________________ सिद्ध-सारस्वत में विभक्त हो गया तथापि हम लोगों का सम्बन्ध बना रहा। गुरुवर डॉ जैन यथासमय रीडर एवं प्रोफेसर पदों पर नियुक्त हुए। इन्होंने संस्कृत विभाग के अध्यक्ष तथा कला सङ्काय के प्रमुख के रूप में कुशलतापूर्वक अपने दायित्वों का निर्वाह किया। गुरुवर प्रो0 जैन ने पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी के निदेशक पद पर भी सकुशल कार्य सम्पादित किया। प्रो० जैन जी ने 39 वर्षों तक अध्यापन कार्य किया और इनके निर्देशन में 44 शोध छात्रों ने पी-एच0डी0 प्राप्त की। इन्होंने कई पुस्तकों का सम्पादन एवं लेखन कार्य किया। गुरुवर प्रो0 जैन को 2012 में राष्ट्रपति-सम्मान प्राप्त हुआ है। इसके अतिरिक्त इन्हें कई पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। प्रो. जैन जैसे कर्त्तव्यनिष्ठ अध्यापक बहुत कम होते हैं। मैं ऐसे कर्त्तव्यनिष्ठ सारस्वत-साधना करने वाले गुरुवर प्रो० सुदर्शन लाल जैन के स्वस्थ शतायु जीवन की मङ्गल कामना करता हूँ। प्रो. प्रद्युम्न दुबे (राष्ट्रपति सम्मान प्राप्त) पूर्व अध्यक्ष, पालि एवं बौद्ध अध्ययन विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय,वाराणसी प्राच्य भाषाओं के मनीषी विद्वान् देश के शीर्षस्थ विद्वानों की जन्म-भूमि के रूप में विख्यात बुन्देलखण्ड की पावन धरती की गोद में बसे सागर जिले में जन्मे प्रो. (डॉ.) सुदर्शन लाल जैन, प्राच्य भाषा जगत् के विशेषकर जैन परम्परा के प्रतिष्ठित विद्वान् हैं। डॉ. जैन ने देश के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में अध्ययन कर स्वयं को स्व-पर हिताय प्रतिष्ठित किया तथा उन संस्थानों के गौरव को भी बढ़ाया। आपने वर्धमान कालेज, विजनौर और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के संस्कृत विभागों, कला सङ्काय में विभागाध्यक्ष, सङ्कायाध्यक्ष आदि पदों पर रहकर उनके दायित्व का कुशल संवहन किया है। आपने अपने विद्यार्थियों को हमेशा पुत्रवत् स्नेह प्रदान किया है। देश की विद्यानगरी वाराणसी में रहने के कारण आपने स्याद्वाद महाविद्यालय में अध्ययन हेतु आने-वाले विद्यार्थियों को अभिभावकत्व भी प्रदान किया तथा अभिभावक के रूप में करणीय सभी सम्भव सहयोग किया। आज आपसे साक्षात् शिक्षा प्राप्त करने वाले सैकड़ों विद्वान् देश-विदेश में ज्ञान देकर अपने गुरुजनों तथा विद्या का मान बढ़ा रहे हैं। स्याद्वाद महाविद्यालय के नीति-नियन्ताओं की अदूरदर्शिता से निर्मित नयी शिक्षा नीति अथवा अपनी निजी परिस्थितियों के कारण भले ही मुझे आपसे साक्षात् अध्ययन का अवसर न मिल पाया हो, किन्तु वाराणसी में अध्ययनरत रहने के कारण मुझे भी आपका वात्सल्यभाव सहज ही मिलता रहा है। प्राच्य विद्याओं को समर्पित ऐसे महान् विद्वद्विभूति के जीवन के 75वें वर्ष में अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट करने का उपक्रम निःसन्देह प्रशंसनीय है। मैं प्रो. जैन की सारस्वत मनीषा को सादर प्रणाम करता हूँ तथा उनके सहज आशीष की अपेक्षा रखता हूँ। प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली के कार्य संचालन में आपका मार्ग-दर्शन हमें प्राप्त होता रहा है। इसलिए बिहार सरकार के शिक्षा विभाग और संस्थान की ओर से मैं आपके सुख, समृद्धि तथा यशस्वी जीवन की कामना करते हुए अपनी शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ। डॉ. ऋषभचन्द्र जैन निदेशक, प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा, शोध संस्थान वैशाली (मुजफ्फरपुर) प्रो. सुदर्शनलाल जैन : एक मृदुभाषी सहृद् विद्वान् प्रोफेसर सुदर्शन लाल जैन से मेरा परिचय सन् 1678 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राङ्गण में साथ-साथ निवास करते समय हुआ। मैं विश्वविद्यालय के प्रौद्योगिकी संस्थान के धातुकीय अभियान्त्रिकी विभाग में अध्यापक था और प्रोफेसर सुदर्शन लाल जैन विश्वविद्यालय के कला सङ्काय अन्तर्गत संस्कृत विभाग में अध्यापक थे। हम लोगों के अलग-अलग शैक्षिणिक विभाग होने के कारण शायद ही कभी सम्पर्क हो पाता था, क्योंकि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एक विशाल शिक्षा-मन्दिर है, जिसमें हजारों की संख्या में शिक्षक कार्य करते हैं। परन्तु एक ही निवास संकुल जिसे