________________ सिद्ध-सारस्वत 'टीचर्स फ्लैट' कहते हैं उसमें निवास का सानिध्य व उनके पुत्र का प्रौद्योगिकी संस्थान में शिक्षा हेतु प्रवेश मिलना हमारे आपसी मेल-मिलाप का कारण बना। हमारे घरेलू सम्बन्ध स्थापित हो गये / हम एक दूसरे के सुख-दुख के साथी बने। कुछ वर्षों बाद हमें बृहद् आवास आवण्टित हो गये, निवास की सानिध्यता समाप्त होने के पश्चात् भी यदा-कदा मिलना हो जाता था। लगभग 25 वर्षों के परिचय के बाद हम दोनों के सेवानिवृत होने के पश्चात् मेल-मिलाप में एक ठहराव सा आया परन्तु सम्बन्ध मधुर बने रहे। 25 वर्षों के आपसी परिचय ने प्रोफेसर सुदर्शन लाल जैन को बहुत निकटता से जानने का अवसर मिला रहे। संस्कृत विषय में शिक्षा के पश्चात् उन्होंने अपना शिक्षण कार्य 1667 में बिजनौर से प्रारम्भ कर 1968 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कला सङ्काय अन्तर्गत संस्कृत विभाग में एक अध्यापक के पद पर कार्य करना प्रारम्भ किया। अपने उत्कृष्ट शिक्षण कार्य के कारण आप सतत पदोन्नति पाकर विभागाध्यक्ष पद पर कार्य करते करते 2003 से 2006, तक कला सङ्काय प्रमुख के पद पर कार्य करने का गौरव प्राप्त किया। 62 वर्ष की आयु सीमा के कारण आप काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की सेवा से 2006 में निवृत्त हो गये। आप सेवानिवृत होने के पश्चात् भी शोधकार्य में संलग्न रहने के कारण आपको सदैव देश के विभिन्न संस्थानों से भाषण के लिये आमन्त्रित किया जाता रहा। आपको अपनी विद्वत्ता के कारण वाराणसी के पार्श्वनाथ विद्यापीठ में 2010 से 2012 तक निदेशक के पद पर रहने का गौरव भी प्राप्त हुआ। वर्तमान में आप भोपाल नगरी में निवास कर रहे हैं। यह मेरा सौभाग्य था कि प्रोफेसर सुदर्शन लाल जैन जैसे संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् से 40 वर्षों के अन्तराल के बाद भी मेरे सम्बन्ध जीवन्त हैं। आप एक अत्यन्त मृदुभाषी, सहृदय एवं प्रेमी व्यक्ति हैं। आपका एक हँसता खेलता परिवार है जिसका पूर्ण श्रेय आपकी धर्मपत्नी डा0 मनोरमा जैन को जाता है। डा0 मनोरमा जैन एक सुशिक्षित गृहणी के साथ प्रोफेसर सुदर्शन लाल जैन की सहयोगी भी हैं। यह एक अत्यन्त हर्ष का विषय है कि प्रोफेसर सुदर्शन लाल जैन के जीवन पर एक स्मारिका का मुद्रण प्रगति पर है और मुझे इस चिरस्मरणीय ग्रन्थ का एक अङ्ग बनने का अवसर मिल रहा है। अन्त में मैं प्रोफेसर सुदर्शन लाल जैन व उनकी धर्मपत्नी डा0 मनोरमा जैन के उत्तम स्वास्थ्य तथा मङ्गलमय जीवन की कामना करते हुये स्मारिका के सम्पादक व प्रकाशक को धन्यवाद देना चाहता हूँ। प्रोफेसर रमेश चंद्र गुप्त भूतपूर्व विभागाध्यक्ष, धातुकीय अभियांत्रिकी विभाग, प्रौद्योगिकी संस्थान, का0हि०वि०वि०, वाराणसी नई पीढ़ी के मार्गदर्शक विद्वद्वरेण्य डॉ. सुदर्शनलालजी का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशन का निर्णय स्तुत्य है। आपके द्वारा संस्कृत व प्राकृत के संरक्षण व सम्वर्द्धन में जो कार्य किया गया है उसे दीर्घकाल तक याद किया जाएगा। आपके निर्देशन में बड़ी संख्या में शोध छात्रों ने शोधकार्य किया है जो प्रशंसनीय है। अ.भा. दि. जैन विद्वत्परिषद् की कार्यकारिणी में आपका सान्निध्य मुझे भी मिला है, अनेक बार आप टोडरमल स्मारक पधारे और हमारे बीच रहकर समय दिया उसके लिए आभारी हूँ। यह अभिनन्दन ग्रन्थ नयी पीढ़ी का मार्गदर्शन करेगा। इसी सद्भावना के साथ / श्री शान्तिकुमार पाटिल श्री टोडरमल स्मारक, भवन जयपुर। कुशल शोध-निदेशक एशिया के सबसे बड़े आवासीय विश्वविद्यालय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कला सङ्काय के सङ्काय प्रमुख (डीन) रहे प्रोफेसर सुदर्शन लाल जैन ने संस्कृत भाषा के साथ-साथ जैन धर्म एवं दर्शन पर अनेक महत्त्वपूर्ण शोध कार्य कराये। आपने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 'उत्तराध्ययन सूत्र का दार्शनिक परिशीलन' विषय पर प्रो. सिद्धेश्वर भट्टाचार्य 52