________________ सिद्ध-सारस्वत तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में सन् 1968-2006 लगभग 38 वर्षों तक अध्यापन के बाद 11 मार्च 2010 को पार्श्वनाथ विद्यापीठ के निदेशक बने और दो वर्षों तक निदेशक के रूप में अपने लेखन, शिक्षण तथा बहुमुखी प्रतिभा से विद्यापीठ को नई ऊंचाइयाँ दी। जैनविद्या के क्षेत्र में आपके अप्रतिम योगदान के लिये आपको राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आपके व्यक्तित्व में तात्त्विकता और सात्विकता का मणिकाञ्चन सुयोग है। आप जितने बड़े विद्वान् हैं उतने ही सरल, सात्विक और सहज हैं। अर्जित ज्ञान को अपने जीवन में आचरण करना आपकी सबसे बड़ी विशेषता है। आप जैसा साधुचरित, शोध-सूक्ष्मेक्षिका सम्पन्न निरहंकारचेता व्यक्ति होना प्राय: विरल है। आपकी विद्वता, भावों की सम्प्रेषणशीलता, सहजता, अर्थबोध, वात्सल्य हमारे लिये सदा एक धरोहर के रूप में हमारे साथ रहेगा। आपकी जीवनचर्या का एक-एक पल अनुकरणीय, मननीय एवं महनीय है। आपके इस अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशन के अवसर पर हम आपको अपनी प्रणामाञ्जलि समर्पित करते हुए आपके सुदीर्घजीवी होने हेतु मङ्गल कामना करते हैं। डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय संयुक्त निदेशक, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी सारस्वत विद्वान् डॉ. सुदर्शनलाल जैन : एक आदर्श विभूति प्रो. सुदर्शनलालजी जैन दिगम्बर जैन समाज के अग्रगण्य मनीषी हैं। परवार जैन समाज की इस विभूति का जन्म सागर (म.प्र.) जिले के छोटे से गाँव 'मञ्जला' में मास्टर सिद्धेलालजी बड़कुल के यहाँ सरस्वती देवी की कोख से 1 अप्रैल 1944 को हुआ था। आपने संस्कृत विषय में एम.ए. करने के उपरान्त पी-एच.डी. की डिग्री प्राप्त की। वर्द्धमान कॉलेज - बिजनौर (उ.प्र.) में संस्कृत विभाग में एक वर्ष व्यतीत करने के उपरान्त काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में आपने 38 वर्षों तक अध्यापन कार्य किया और प्रोफेसर के पद पर पहुँचकर विभागाध्यक्ष व कला सङ्काय के डीन पद को सुशोभित किया। आपने अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन सफलतापूर्वक किया और वहीं से 30 जून 2006 को सेवानिवृत्त हुए। डॉ. मनोरमा जैन आपकी सहधर्मिणी हैं जिनसे तीन पुत्र डॉ. सन्दीप जैन, संजय जैन व अभिषेक जैन तथा एक पुत्री डॉ. मनीषा जैन हैं। दोनों बड़े पुत्र अमेरिका में निवास करते हैं तथा छोटा पुत्र मुम्बई में कार्यरत हैं। पुत्री-दामाद भोपाल में पीपुल्स मेडिकल कॉलेज में सेवारत हैं। आप भी अब भोपाल में निवास कर रहे हैं। रिटायरमेन्ट के पश्चात् आपने पार्श्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी में 11 मार्च 2010 से 30 अप्रैल 2012 तक निदेशक के रूप में कार्य किया। आपके निर्देशन में अब तक करीब 44 शोध छात्रों ने पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। अविभाजित विद्वत्परिषद् में आपने 1992 से 1996 तक पाँच वर्ष मंत्री पद का दायित्व बखूबी सम्हाला पश्चात् आपने उपाध्यक्ष तथा कार्याध्यक्ष जैसे पदों को सुशोभित किया। जैनधर्म व दर्शन के व्यापक प्रचार-प्रसार हेतु आप सदा कटिबद्ध रहे व अनेक राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों के सफल संयोजक रहे। आपके शताधिक शोधपूर्ण आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। आपने अपने व्याख्यानों से देशवासियों को तो लाभान्वित किया ही विदेशों में भी महत्ती धर्म-प्रभावना की। संस्कृत-प्राकृत भाषा के संरक्षण व संवर्द्धन हेतु भारत सरकार की ओर से महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणवमुखर्जी द्वारा आपको सम्मानित भी किया गया जो सर्वाधिक गौरव का विषय है। समय-समय पर आपको अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। आपकी अनेक मौलिक व सम्पादित कृतियाँ आज समाज की धरोहर हैं। विद्वत्परिषद् द्वारा देव-शास्त्र गुरु पुस्तक विशेष चर्चित रही। मुझे अ.भा.दि. जैन विद्वत्परिषद् की कार्यकारिणी में आपके साथ प्रकाशन व प्रचार मंत्री के रूप में कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। वीतराग-वाणी ट्रस्ट आपके गौरवशाली अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन करने जा रहा है, जो निसंदेह मील का पत्थर बनकर आगे आने वाली पीढ़ी का मार्गदर्शन करेगा। मैं आप जैसे सारस्वत विभूति को नमन करता हुआ आपके दीर्घ जीवन की कामना करता हूँ। डॉ. अखिल बंसल महामंत्री, अ.भा.दि. जैन विद्वत्परिषद् तथा महामंत्री, अ.भा. जैन पत्र सम्पादक सङ्घ, जयपुर 42