________________ सिद्ध-सारस्वत प्राच्यविद्या मनीषी : प्रोफेसर सुदर्शन लाल जैन प्रोफेसर सुदर्शन लाल जैन शान्ति निकेतन विद्यालय कटनी (म. प्र.) में हमारे सहपाठी रहे हैं। फिर हम बनारस में भी श्री स्याद्वाद महाविद्यालय में एकसाथ रहकर अध्ययन में रत रहे। इस प्रकार प्रारम्भ से अन्त तक हमारे गुरु भी एक समान थे, किन्तु आगे चलकर प्रो. सुदर्शन जी ने संस्कृत के क्षेत्र में विकास किया और मैंने प्राकृत भाषा एवं साहित्य को चुना। संयोग से हम दोनों की ससुराल भी दमोह (म. प्र.) बनी, अतः हम सहपाठी के साथ रिश्तेदार भी बन गये। प्रोफेसर सुदर्शन लाल जी प्रारम्भ से अध्ययनशील और चिन्तक रहे हैं। परिणामस्वरूप आपने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय जैसी प्रसिद्ध युनिवर्सिटी में और संस्कृत विद्या के विशाल आकाश में लम्बी प्रतिस्पर्धा को पार करते हुए अपनी पहचान बनायी। संस्कृत विद्या के क्षेत्र में बनारसी पण्डितों के बीच युनिवर्सिटी प्रोफेसर और डीन के पद पर प्रतिष्ठित होना प्रो. जैन की कर्मठता और लगन का सुपरिणाम है। बनारस में कई प्रकार की प्रतिष्पर्धाएँ, कठिनाईयाँ झेलनी पड़ती हैं, किन्तु प्रोफेसर सुदर्शन जैन ने उन सबको पार किया है। तभी वे संस्कृत विद्या के श्रेष्ठ मनीषी के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं। जैन दर्शन के विद्वान् होने के नाते डॉ. जैन ने प्राकृत साहित्य का भी गहन अध्ययन किया है। उनका शोध-प्रबन्ध भी प्राकृत के आगम ग्रन्थ पर है। प्राकृत व्याकरण पर आपने पुस्तक भी लिखी है। परिणामस्वरूप आपको पालिप्राकृत अध्ययन में निष्णात होने के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा गौरव सम्मान प्रदान किया गया है। यह संयोग ही है कि उस समय भारत सरकार की इस सम्मान चयन समिति में सदस्य होने का गौरव मुझे प्राप्त हुआ था। हम दोनों के गुरुवर्य स्वनामधन्य आदरणीय पं. जगन्मोहन लाल जी सिद्धान्तशास्त्री एवं आदरणीय पण्डित प्रवर कैलाशचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री के आशीष का ही यह फल है। प्रोफेसर सुदर्शन लाल जैन अच्छे शिक्षक एवं सूक्ष्मदर्शी अनुसन्धाता के साथ कुशल प्रशासक भी हैं। आपने बनारस की प्रमुख शोध संस्था पार्श्वनाथ जैन विद्याश्रम में निदेशक के रूप में भी अपनी सेवाएं दी हैं। आपके निदेशन में 40 से अधिक शोधार्थियों ने पीएच.डी. उपाधि प्राप्त की है। अत: डॉ. जैन का शिष्य समुदाय भी बड़ा है। जैन समाज की शीर्ष संस्थाओं को भी डॉ. जैन का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है। इन सब अकादमिक उपलब्धि और यश:कीर्ति की प्राप्ति में आपकी धर्मपत्नी एवं हमारी भाभी जी श्रीमती डॉ. मनोरमा जैन का उन्हें पग-पग पर सहयोग प्राप्त रहा है। आपके युगल प्रयास और संस्कार से आपकी सन्तान ने उच्च शिक्षा और पद-प्रतिष्ठा प्राप्त की है। ऐसे सांस्कृतिक एवं सुशिक्षित परिवार के लिए हम सबकी ओर से हार्दिक बधाई है। प्रोफेसर एस. एल. जैन सा. सुखद, स्वस्थ्य एवं स्नेहपूर्ण दीर्घायु प्राप्त करें, यही मङ्गल कामना है। उनके अमृतवर्ष जयन्ती पर हार्दिक शुभकामनाएँ। प्रोफेसर प्रेम सुमन जैन एवं डॉ. श्रीमती सरोज जैन, पूर्व अध्यक्ष, प्राकृत विभाग तथा डीन, सुखाडिया विश्वविद्यालय, उदयपुर सरल एवं सहज व्यक्तित्व के धनी भारतभूमि रत्नगर्भा है। इस वसुन्धरा ने अनेक रत्न उगले हैं। ऐसे ही रत्नों में से एक दीप्तिमय रत्न ज्ञानमय अपनी पूर्ण आभा के साथ तेजस्वी छटा बिखेर रहे प्रो. सुदर्शनलालजी जैन है। आप की सहजता, सरलता व सादगी के बारे में जितना लिखा जाये उतना ही कम है। आपका शांत चित्त निरन्तर साहित्य सेवा में लगा रहता है। कई पुरस्कारों से सम्मानित होते हुए भी आपके व्यवहार में सदैव विनय व सादगी नजर आती है। मेरा परम सौभाग्य था कि आपश्री ने ही मेरा पीएच.डी. का वायवा (मौखिकी) लेकर मुझे उपाधि प्रदान की थी। प्रो. सुदर्शनलालजी जैन जैसे सात्त्विक, सदाशयी, सद्भावपूर्ण तथा सर्वमङ्गलकारी व्यक्तित्व के धारी समर्पित निष्ठावान तथा मनस्वी पुरुष संसार में विरले हैं जिन्होंने नवीन अनुसंधान करके सारस्वत क्षेत्र को उज्जवल बनाया। 36