________________ सिद्ध-सारस्वत आपके बारे में कुछ कहना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। 'शिक्षा से मेरा तात्पर्य व्यक्ति के सामाजिक, आध्यात्मिक तथा चारित्रिक गुणों का विकास है।' महात्मा गांधी के इस वाक्य को सार्थक करते हुए विद्वद्वर्य प्रो. सुदर्शनलालजी ने कई ग्रन्थों की रचना की और आपको श्रेष्ठ पुरस्कार राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित किया गया। भारतीय संस्कृति में ज्ञान व्यापक शब्द है। ज्ञान के बिना जीवन अधूरा है। इसीलिए ज्ञान के बिना व्यक्ति को पशु-तुल्य बताया है। ग्रन्थ या पुस्तक ज्ञान के माध्यम हैं, इनका स्वाध्याय करना तप माना गया है। स्वाध्याय को शास्त्रों में परम तप के रूप में संदर्भित किया है। पश्चिमी संस्कृति में भी पुस्तक जीवन का महत्त्वपूर्ण अङ्ग है। 'पुस्तक सर्वश्रेष्ठ मित्र है।' ज्ञान तथा शिक्षा का जीवन में सर्वोपरि महत्त्व है। जैन संस्कृति ने इन्हें पूज्य माना है। आपश्री द्वारा निरन्तर लेखन आपके अगाध ज्ञान का ही फल है। आपका जीवन मङ्गलमय हो और आप निरन्तर जिनवाणी की सेवा करते रहें। यही हमारी ईश्वर से प्रार्थना है। डॉ. रीना जैन (बेद) प्रशासनिक ऑफीसर, प्राकृत भारती, जयपुर वन्दे गुरुं सिद्धसारस्वतम् वन्दे गुरूणां चरणारविन्दे ! श्रद्धेयानां गुरुप्रवराणां सिद्धसारस्वतानां सत्प्रेरकानां मार्गदर्शकानां विविधशास्त्रनिष्णातानां तत्त्वज्ञानां जैनविद्यास्नातकानां राष्ट्रपतिसम्मानविभूषितानां परमविदुषां विद्वद्वरेण्यानां प्रो. सुदर्शनलालजैनमहाभागानां सम्मानार्थम् अभिनन्दनग्रन्थोऽयं 'सिद्धसारस्वतः' इत्यभिधानात्मक: प्रकाशितो भवति, हर्षस्य विषयोऽयम्। गुरुवर्याणां वैदुष्यं विलसति विशिष्टं तथा च विलसति सरलस्वभावयुतं व्यक्तित्वम्। भवतां ज्ञानयशः सर्वत्र सुप्रसारितं वर्तते विद्वज्जगति। भवादृशाः महान्तः छात्रहितचिन्तका: गुरवः यत्र भवन्ति तत्र शिष्यहितं भवत्येव निश्चयेन। भवतां श्रद्धेयगुरुवर्याणां प्रथमदर्शनं भोजराजनगाँ भोपालनगरे जातं, भवताञ्च आशीर्वादाः अस्माभिः प्राप्ताः / तत्र राष्ट्रियसंस्कृतसंस्थानस्य भोपालपरिसरस्य जैनदर्शनविभागेन समायोजितायां राष्ट्रियशोधसंगोष्ठयां भवन्त: मुख्यातिथिरूपेण समागताः आसन्। तत्र भवतां वैदुष्यं सरलव्यक्तित्वञ्च अस्माभिः साक्षीकृतम्। भवद्भिः जीवने अद्भुतसाहित्यसेवा कृता। नैकाः उत्तमाः श्रेष्ठाः कृतयः भवद्भिः रचिताः सन्ति / तासु रचनासु विषयगाम्भीर्य स्पष्टरूपेण दृश्यते / तत्रैव सरसा सरला सुबोधा प्रभावात्मकरचनाशैली च अस्माभिः अवलोकिता। भवतां व्यक्तित्वे अस्त्येकं सकारात्मकप्रभावात्मकमाकर्षणं येन आकर्षिताः भवामः वयम्। भवन्तः एवं प्रकारेणैव संस्कृतप्राकृतयोः साहित्यसेवां करिष्यन्ति, यस्मात् मादृशानामबोधवालानां मार्गः प्रशस्त: भविष्यति। श्रद्धेयगुरुवर्याः! भवन्तः सर्वदा स्वस्थाः प्रसन्नाः जिनवाणीसेवारताः भवन्त्विति भगवन्तं प्रार्थये। विद्वत्गुणानुरागी डॉ. प्रतापशास्त्री अध्यक्षः जैनदर्शनविभागः, राष्ट्रियसंस्कृतसंस्थानम्, भोपालपरिसर सौम्यमूर्ति गुरुदेव प्रो० सुदर्शन लाल जैन अन्तर्मुखी प्रतिभा के धनी, सौम्यमूर्ति सम्माननीय गुरुदेव प्रो० सुदर्शन लाल जैन जैनदर्शन, प्राकृत एवं संस्कृत के मूर्धन्य मनीषी विद्वान् हैं। जीवन पर्यन्त वे श्रुताराधना करते हुए जैनधर्म के प्रचार-प्रसार में लगे रहे। सामाजिक एकता और अखण्डता बनाये रखने के लिए भी आप निरन्तर प्रयत्नशील रहे हैं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी में दीर्घावधि तक संस्कृत-प्राकृत भाषा के प्रोफेसर रहकर आपने अनेक विद्यार्थियों को संस्कृत-प्राकृत भाषा में दक्ष बनाया है। विषय-विशेषज्ञ आपके वैदुष्य से प्रभावित होकर सरकार और समाज द्वारा आपको अनेक बार सम्मानित किया जा 37