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श्रीमद्ररविषेणाचार्यकृतं
पद्मचरितापरनामधेयं
पद्मपुराणम्
प्रथमं पर्व
सिद्धं संपूर्णमव्यर्थं सिद्धेः कारणमुत्तमम् । प्रशस्तदर्शनज्ञानचारित्रप्रतिपादिनम् ||१|| सुरेन्द्र मुकुटाश्लिष्टपादपद्मांशुकेशरम् । प्रणमामि महावीरं लोकत्रितयमङ्गलम् ||२|| प्रथमं चावसर्पिण्यामृषभं जिनपुङ्गवम् । योगिनं सर्वविद्यानां विधातारं स्वयंभुवम् ॥३॥ अजितं विजिताशेषबाह्य शारीरशात्रवम् । शम्भवं शं भवत्यस्मादित्यभिख्यामुपागतम् ॥४॥ अभिनन्दित निःशेषभुवनं चाभिनन्दनम् । सुमतिं सुमतिं नाथं मतान्तरनिरासिनम् ||५|| उद्यदर्ककरालीढपद्माकरसमप्रभम् । पद्मप्रभं सुपाखं च सुपार्श्व सर्ववेदिनम् ॥ ६॥ शरत्सकलचन्द्राभं परं चन्द्रप्रभं प्रभुम् । पुष्पदन्तं च संफुल्लकुन्दपुष्पप्रभद्विजम् ॥ ७॥ शीतलं शीतलध्यानदायिनं परमेष्ठिनम् । श्रेयांसं मव्यसत्त्वानां श्रेयांसं धर्मदेशिनम् ||८||
चिदानन्द चैतन्य के गुण अनन्त उर धार ।
भाषा पद्मपुराण की भाğ श्रुति अनुसार ॥ - दौलतरामजी
जो स्वयं कृतकृत्य हैं, जिनके प्रसादसे भव्यजीवोंके मनोरथ पूर्ण होते हैं, जो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रका प्रतिपादन करनेवाले हैं, जिनके चरणकमलोंकी किरणरूपी केशर इन्द्रोंके मुकुटोंसे, आश्लिष्ट हो रही है तथा जो तीनों लोकोंमें मंगलस्वरूप हैं ऐसे महावीर भगवान्को मैं नमस्कार करता हूँ ॥ १-२ ॥ जो योगी थे, समस्त विद्याओंके विधाता और स्वयम्भू थे ऐसे अवसर्पिणी कालके प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभजिनेन्द्रको नमस्कार करता हूँ || ३ || जिन्होंने समस्त अन्तरंग और बहिरंग शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर ली ऐसे अजितनाथ भगवान्को तथा जिनसे शम् अर्थात् सुख प्राप्त होता है ऐसे सार्थक नामको धारण करनेवाले शम्भवनाथ भगवान्को नमस्कार करता हूँ ॥ ४ ॥ समस्त संसारको आनन्दित करनेवाले अभिनन्दन भगवान्को एवं सम्यग्ज्ञानके धारक और अन्य मत-मतान्तरोंका निराकरण करनेवाले सुमतिनाथ जिनेन्द्रको नमस्कार करता हूँ ||५|| उदित होते हुए सूर्यकी किरणोंसे व्याप्त कमलोंके समूह के समान कान्तिको धारण करनेवाले पद्मप्रभ भगवान्को तथा जिनकी पसली अत्यन्त सुन्दर थीं ऐसे सर्वज्ञ सुपाश्वनाथ जिनेन्द्रको नमस्कार करता हूँ || ६ || जिनके शरीरकी प्रभा शरदऋतुके पूर्णं चन्द्रमाके समान थी ऐसे अत्यन्त श्रेष्ठ चन्द्रप्रभ स्वामीको ओर जिनके दाँत फूले हुए कुन्द पुष्प के समान कान्ति के धारक थे ऐसे पुष्पदन्त भगवान्को नमस्कार करता हूँ || ७ | जो शीतल अर्थात् शान्तिदायक ध्यानके देनेवाले थे ऐसे शीतलनाथ जिनेन्द्रको तथा जो कल्याण रूप थे एवं भव्य
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