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आगम विषय कोश-२
अंतेवासी
(सर्वप्रथम भगवती मरुदेवा सिद्ध हुई।)
सिद्ध होता है। जैसे-चक्रवर्ती सम्राट सनत्कुमार। ६. श्रमण महावीर आदि के अंतकृत अंतेवासी ४. कोई पुरुष अल्प कर्मों के साथ आता है, उसके घोर तप
समणस्स भगवओ महावीरस्स सत्त अंतेवासिसयाई और घोर वेदना नहीं होती। वह अल्पकालीन मुनि पर्याय के सिद्धाइं जाव सव्वदुक्खप्पहीणाई चउद्दस अज्जियासयाई द्वारा सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होता है। जैसे-भगवती मरुदेवा।) सिद्धाइं॥
__ अंतकृतभूमि-भव-परम्परा का अंत कर निर्वाण प्राप्त पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स"दस सया केवलनाणीणं"।
करने वालों की भूमि अर्थात् काल ।
(द्र अंतकृत) अरहओर्ण अरिट्ठनेमिस्स"पन्नरस समणसया सिद्धा, तीसं अज्जियासयाई सिद्धाइं॥
अंतेवासी-शिष्य, सन्निकट रहने वाला। उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स वीसं अंतेवासि
| १. अंतेवासी का अर्थ सहस्सा सिद्धा, चत्तालीसं अज्जियासाहस्सीओ सिद्धाओ।
० अंतेवासी के प्रकार : प्रव्राजना आदि ____ (दशा ८ परि सू१०३, १२२, १३६, १७८) * शैक्षभूमि : सामायिक की कालमर्यादा द्रचारित्र श्रमण भगवान् महावीर के सात सौ अंतेवासी साधु
* आगमवाचना में संयमपर्याय की कालमर्यादा द्र श्रुतज्ञान और चौदह सौ साध्वियां सिद्धि को प्राप्त हुईं यावत् सर्व
| २. शिष्य के प्रकार : परिणामक आदि
३. परिणामक (परिपक्व) शिष्य के प्रकार दुःखों से मुक्त हुईं।
४. परिणामक आदि शिष्यों की परीक्षा पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व के एक हजार साधु (और दो
___* आज्ञापरिणामक शिष्य
द्र व्यवहार हजार साध्वियां)अंतकृत हुए।
* अपरिणामक और प्रायश्चित्त द्र प्रायश्चित्त __ अर्हत् अरिष्टनेमि के डेढ हजार साधु और तीन हजार ५. अपरिणामक आदि वाचना के अयोग्य साध्वियां सिद्धि को प्राप्त हुईं।
६. अयोग्य से योग्य : अग्नि आदि दृष्टांत __ कौशलिक अर्हत् ऋषभ के बीस हजार अंतेवासी और ७. स्थूलग्राही से सूक्ष्मग्राही : सिद्धार्थ आदि दृष्टांत चालीस हजार साध्वियां मुक्त हुईं।
८. अशिष्य आचार्यपद के अयोग्य (स्था ४/१ में चार प्रकार की अन्तक्रिया का उल्लेख
* शिष्य द्वारा संपादित पांच अतिशय -
* आचार्य आदि की निश्रा अनिवार्य द्र आचार्य
९. अंतेवासी की विनय प्रतिपत्ति के प्रकार १. कोई पुरुष अल्प कर्मों के साथ मनुष्य जन्म को प्राप्त होता
* अध्ययन योग्य शिष्य : छत्रांतिका आदि पर्षद् द्र परिषद है, प्रव्रजित होकर उपधान करता है, उसके घोर तप और घोर * विनीत शिष्य को वाचना
द्र वाचना वेदना नहीं होती। इस श्रेणी का पुरुष दीर्घकालीन मुनिपर्याय * ज्ञान-दर्शन-चारित्र हेतु उपसम्पदा द्र उपसम्पदा के द्वारा सिद्ध होता है। जैसे-चक्रवर्ती सम्राट भरत।।
* श्रुतहेतु वृद्धवास की अनुज्ञा द्र श्रुतज्ञान २. कोई पुरुष बहुत कर्मों के साथ मनुष्य जन्म को प्राप्त होता है, उसके घोर तप और घोर वेदना होती है। इस श्रेणी का
१. अंतेवासी का अर्थ पुरुष अल्पकालीन मुनिपर्याय के द्वारा सिद्ध होता है। जैसे
...."अंतमब्भासमासन्नं, समीवं चेव आहितं। गजसुकुमाल।
.....अंते य वसति जम्हा, अंतेवासी ततो होति ॥ ३. कोई पुरुष महाकर्म के साथ आता है, उसके घोर तप और थेराणमंतिए
वासो........॥ घोर वेदना होती है। वह दीर्घकालीन मुनि पर्याय के द्वारा
(व्यभा ४५९५-४५९७)
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