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ईश्वर सम्बन्धी जैन अवधारणा
___ डॉ. शीतलचन्द जैन 'दर्शन' शब्द का व्युत्पत्तिजन्य अर्थ देखना, विचारना और श्रद्धा करना है। प्रत्येक मनुष्य के जीवन में दर्शन का महत्त्व है। वस्तुतः जिन विचारों द्वारा धर्म का समर्थन एवं सम्पोषण किया जाता है, उन विचारों को दर्शन कहा जाता है। प्रायः सभी भारतीय दर्शनों ने दुःखनिवृत्ति को मोक्ष कहा है। यही बन्धन एवं मोक्ष भारतीय दर्शनों का मुख्य प्रश्न रहा है। अत: उनके स्वरूप एवं दु:ख-निवृत्ति के उपायों के विश्लेषण में मतभेद है। कोई ईश्वर की सेवा से मोक्ष मानता है, तो कोई ईश्वर के द्वारा और कोई आत्मा के साक्षात्कार से मोक्ष मानता है, कोई इस संसार का सृष्टिकर्ता ईश्वर को मानता है, तो कोई सृष्टि को अनादि मानता है।
भारतीय दर्शन में ईश्वरवाद का बहुत विस्तृत व्याख्यान मिलता है, सम्भवतः ईश्वरवाद के बिना किसी भी भारतीय दर्शन की कल्पना मुश्किल है। जो दर्शन ईश्वर को जगत्सृष्टिकर्ता के रूप में मानते हैं, वे भी ईश्वर के अन्य गुणों को अपने-अपने पूज्य देवों में मानते हैं । इस प्रकार एक सार्वभौम गुणातिशयशाली दिव्यपुरुष की कल्पना प्रायः सभी दर्शनों में मिलती है।
भारतीय दर्शनों को आस्तिक और नास्तिक के भेद से दो श्रेणियों में विभक्त किया जाता है। न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदान्त- इन छह दर्शनों को आस्तिक तथा जैन, बौद्ध और चार्वाक्-इन तीन दर्शनों को नास्तिक कहा जाता है, परन्तु भारतीय दर्शनों को आस्तिक और नास्तिक इन दो श्रेणियों में विभक्त करने वाला कोई सर्व-मान्य सिद्धान्त नहीं है। अतः भारतीय दर्शनों का विभाग वैदिक और अवैदिक दर्शनों के रूप में करना युक्ति-संगत प्रतीत होता है। वेद को प्रमाण मानने के कारण न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदान्त- ये छह वैदिक-दर्शन हैं तथा वेद को प्रमाण न मानने के कारण चार्वाक, बौद्ध और जैन- ये तीन अवैदिक-दर्शन हैं। ___ भारतीय संस्कृति में ईश्वर की अवधारणा इस प्रकार से घर कर गयी कि जनसाधारण सामान्यतया सब-कुछ कार्य ईश्वर की कृपा से मानने लगा, इतना तक कि स्वर्ग-नरक में भेजने वाला ईश्वर हो गया। उक्त प्रकार की अवधारणा कहाँ तक उचित है और जैनदर्शन ईश्वरवादी है या अनीश्वरवादी? ....यदि ईश्वरवादी है तो उसकी अवधारणा क्या है?
ईश्वर सम्बन्धी जैन अवधारणा :: 49
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