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युगवीर-निवन्धावली
तो बहत सभव था कि वह निराश्रित दशामे अपनी माताके ही पास जाती और वेश्यावृत्तिके लिये मजबूर होती और तब उसका वह सुन्दर श्राविकाका जीवन न बन पाता जो उन लोगोके प्रेमपूर्वक आश्रय देने और सद्व्यवहारसे बन सका है। इसलिये सुधारके अर्थ प्रेम, उपकार और सद्व्यवहारको अपनाना चाहिये, उसकी नितान्त आवश्यकता है। पापी-से-पापीका भी सुधार हो सकता है, परन्तु सुधारक होना चाहिये। ऐसा कोई भी पुरुष नही है जो स्वभावसे ही 'अयोग्य' हो, परन्तु उसे योग्यताकी
ओर लगानेवाला अथवा उसकी योग्यतासे काम लेनेवाला 'योजक' होना चाहिये। उसीका मिलना कठिन है। इसीसे नीतिकारोने कहा है
"अयोग्यः पुरुषो नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभः ।" __ जो जाति अपने किसी अपराधी व्यक्तिको जातिसे खारिज करती है और इस तरह उसके व्यक्तित्वके प्रति भारी घृणा और तिरस्कारके भावको प्रदर्शित करती है, समझना चाहिये, वह स्वय उसका सुधार करनेके लिये असमर्थ है, अयोग्य है और उसमे योजक-शक्ति नही है। साथ ही, इस कृतिके द्वारा वह सर्वसाधारणमे अपनी उस अयोग्यता और अशक्तिकी घोषणा कर रही है, इतना ही नही बल्कि अपनी स्वार्थ साधनाको भी प्रकट कर रही है। ऐसी अयोग्य और असमर्थ जातिका, जो अपनेको थाम भी नही सकती, क्रमश. पतन होना कुछ भी अस्वाभाविक नही है। पापीका सुधार वही कर सकता है जो पापीके व्यक्तित्वसे घृणा नहीं करता, बल्कि पापसे घृणा करता है। पापीसे घृणा करनेवाला पापीके पास नही फटकता, वह सदैव उससे दूर रहता है और उन दोनोके बीचमे मीलोकी दूरी हो जाती है, इससे वह