Book Title: Tattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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तत्त्वार्थसूत्रे चचोयोग विषया मृषा २ उमयात्मक वचोयोगविषया सत्यामृषा ३, उभयस्वभावरहित वचोपाररूा ववोयोगविषयाऽसत मृषा वचोगुप्तिः ४ एवं-मनोगुप्तिरपि, सत्या-मृषा सत्यामृषा असत्यामृषा चिन्तनरूपभेदेन चतुर्विधा। कायगुप्तिरपि सत्पादिभेदेन चतुर्विधा कायव्यापाररूप काययोगविषया-सत्या, मृषा, सत्यामृषा, ऽसत्या मृषा भावेन कायव्यापारः कायगुतिः इयमनेकधा-स्थान निषदन स्वरतनो ल्लंघनपलंघनेन्द्रिययोजनसंरम्भसभारम्नप्रवृत्तिनिवृत्तिभेदात् । एतान् भेदाना. श्रित्याऽऽत्मनः सम्प कूतया संरक्षण रूपा त्रिविधा गुप्ति रुच्यते । तथा चोक्तम्वचन गुप्ति है ! सत्यासत्य वचनों का निरोध सत्यामृषा वचनगुप्ति है
और जिन्हें सत्य भी न कह सकें और असत्य भी न कह सके ऐसे व्यावहारिक वचनयोग का निरोध होना असत्यामृषा वचनगुप्ति है।
मनोगुप्ति के भी चार भेद हैं-सस्था, मृषा, सत्यामृषा और असत्यामृषा । वचनगुप्ति में वचन के प्रयोग का निषेध होता है और मनोगुप्ति में सत्य आदि के चिन्तन का।
कायगुप्ति भी प्रोक्त प्रकार से सत्य आदि के भेद से चार प्रकार की है अथवा इसके अनेक भेद हैं, खडा होना, बैठना, लेटना, लाधना, कूदना, इन्द्रियये जन, संरम्भ समारम्भ सम्बन्धी प्रवृत्तिको रोकना, यह सब कायगुप्ति है।
इन सब भेदों की अपेक्षा से आत्माका सम्यक प्रकार से संरक्षण करना तीन प्रकार की गुप्ति है। कहा भी है-'समस्त कल्पनाओं के વચનને નિરે ધ સત્યામૃષા વચનગુમિ છે અને જેને સત્ય પણ ન કહી શકાય અને અસત્ય પણ ન કહી શકાય એવા વ્યવહારિક વચનયોગને વિરોધ થ અસત્યામૃષા વચન ગુપ્તિ છે.
મનગુપ્તિના પણ ચાર ભેદ છે-સત્યા, મૃષા, સત્યામૃષા અને અસત્યા મૃષા વચનગુપ્તિમાં વચનના પ્રયોગને નિષેધ હોય છે અને મને ગુપ્તિમાં સત્ય આદિના ચિત્તનનો.
કાયગુપ્તિ પણ પૂર્વોકત પ્રકારથી–સત્ય આદિના ભેદથી ચાર પ્રકારની छ ५५१॥ मना भने ले छे. 3मा रेस सुबु, सूज्या २', કદવું ઈન્દ્રિયજન, સંરંભ, સમારંભ સંબંધી પ્રવૃત્તિઓને રિકવી આ બધું 'यति ' छे.
આ તમામ ભેદની અપેક્ષાથી આત્માનું સમ્યક્ પ્રકારથી સંરક્ષણ કરવું
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્રઃ ૨