Book Title: Tattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 812
________________ - -- ७२६ तत्त्वार्यसूत्रे पशमचेति क्षयोपशमौ तौ निमित्तं यस्य तत् क्षयोपशमनिमित्तम् अवधिज्ञान षड्विधं मवति । तत्र क्षयस्तावत्-अवधिज्ञानावरणस्य देशघाति स्पद्धकाना मुदयेसति सवेचाति स्पर्द्धकानामुदयाभावरूपः । उपशमस्तु-तथाविधानामेव स्पर्धकानामुदयप्राप्तानां सदवस्थारूपः। स्पर्द्धकश्च कर्मपुद्गलशक्तीनां क्रमिकवृद्धिहासरूप वोध्यम् तथाचैकं भवप्रत्ययिकम् १ क्षयोपशामिकं पविधम् । आनुगामिकम् २ अनानुगामिकम् ३ वर्द्धमानम् ४ हीयमानम् ५ प्रतिपाति ६ अपतिपाति७ चेत्येवं सर्व सप्तविधं तावत् अवधिज्ञानमवसेयम् । तत्र-भवपत्ययिकमवधिज्ञान देवानां नारकाणाश्च भवति । क्षयोपशमनिमित्तकञ्च-पइविधमवधिज्ञान मनुष्याणां पञ्चेभव जिसमें बाह्य करण हो वह अवधिज्ञान भवप्रत्यय कहलाता है। जिस अवधिज्ञान में क्षयोपशम ही प्रधान कारण हो वह क्षयोपशम. निमित्तक या क्षयोपशम प्रत्यय कहलाता है ।क्षयोपशमनिमित्तक अवधि ज्ञान छह प्रकार का है। अवधिज्ञानावरण कर्म के देशघातक स्पर्धकों का उदय हो, उदय में आये हुह सर्वेघातक स्पर्धेकों का क्षय हो और आगे उदय में आने वाले स्पर्धकों का उपशम हो, तष अवधिज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम होता है। क्षयोपशमनिमित्तक अवधिज्ञान के छह भेद हैं-(१) आनुगामिक (२) अनानुगामिक (३) वर्द्धमान (४) हीयमान (५) प्रतिपाति और (६) अप्रतिपाति । इन भेदों में यदि भवप्रत्यय को सम्मिलित कर दिया जाय तो सात भेद कहे जा सकते हैं। भवप्रत्ययिक अवधिज्ञान देवों और नारकों को होता है। क्षयोपशमनिमित्तक उन संज्ञी मनुष्यों और पञ्चेन्द्रिय तिर्यचों को होता है હેય તે અવધિજ્ઞાન ભવ પ્રત્યય કહેવાય છે. જે અવધિજ્ઞાનમાં ક્ષપશમ જ પ્રધાન કારણ હોય તે ક્ષયોપશમનિમિત્તક અથવા ક્ષયોપશમપ્રત્યય કહેવાય છે #પશમનિમિત્તક અવધિજ્ઞાન છ પ્રકારનાં છે. અવધિજ્ઞાનાવરણ કર્મના દેશઘાતક સ્પર્ધકોને ઉદય થાય, ઉદયમાં આવેલા સર્વઘાતક સ્પર્ધકના ક્ષય થાય અને આગળ ઉપર ઉદયમાં આવનારા સ્પર્ધકે ઉપશમ થાય ત્યારે અવધિજ્ઞાનાવરણ કર્મને ક્ષય થાય છે. ક્ષપશમનિમિત્તક અવધિજ્ઞાનનાં છ ભેદ છે (૧) આનુગામિક (૨) मनानुमि (3) भान (४) डीयमान (५) प्रतिपाती अने (१) अप्रतिपाती આ ભેદમાં જે ભવ પ્રત્યયને મેળવી દેવામાં આવે તે સાત ભેદ કહી શકાય. ભવ પ્રત્યઈક અવધિ જ્ઞાન દેવો અને નારકને થાય છે પશમનિમિત્તક તે સંજ્ઞી મનુષ્ય અને તીર્થંચ પંચેન્દ્રિયને થાય છે. કે જેઓએ અવધિજ્ઞાના શ્રી તત્વાર્થ સૂત્રઃ ૨

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