Book Title: Tattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 859
________________ दीपिका-नियुक्ति टीका अ.९ सू.१ मोक्षतत्वनिरूपणम् ८५३ अध्ययने ७१ सूत्रोचोक्तम्-'तप्पढमयाए-जहाणुपुवीए-अदृयीसइविहं मोहणिज्ज कम्मं उग्धाएइ, पंचविहं नाणावरणिज्ज, नवविह अंतराइयं एए तिन्नि बि कम्मंसे जुगवं खदेह' इति, तत्पथमतया यथानुपूा-ऽष्टाविंशति विघं मोहनीयं कर्म समुद्घात्यते, पञ्चविधं ज्ञानावरणीयम्, नवविधं दर्शनावरणीयम्, पञ्चविधम्-आन्तरायिकम्, एतानि त्रीनपि कर्मा शान युगपतक्षपयति, इति, पुनोत्तराध्ययने २९ अध्ययने ७२ मूत्रे-चोक्तम्-'अणगारे समुच्छिन्नकिरियं अनियहि सुक्कझरणं-झियायमाणे वेयणिज्जं आउयं नामं गोत्तं च-एए चत्तारि कम्मं से जुगवं खवेइ' इति, अनगार: समुच्छिन्नक्रियः अनिवत्ति शुक्लध्यानं ध्यायन् वेदनीयम् आयुष्यं नामगोत्रंच, एतान् चतुरः कर्मा शान् युगपत् क्षपयति' इति । तथाचोत्तराध्ययन-स्थाना सूत्रागममामाण्येण मोक्षावस्थायाम् आत्मनः कृत्स्नकर्मक्षयो भवतीति ज्ञायते, अतएव सकलकर्मक्षयलक्षणो मोक्षो व्यपदिश्यते इति प्रकृतसूत्रे मोक्तम् ॥१॥ क्षीण होते हैं। वे इस प्रकार हैं-ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तराय। उत्तराध्ययन के २९ वें अध्ययन के ७१ वें बोल में कहा है-'सर्व. प्रथम यथाक्रम अट्ठाईस प्रकार के मोहनीय कर्म का क्षय करते हैं, पांच प्रकार के ज्ञानावरण को, नौ प्रकार के दर्शनावरण कर्म को और पांच प्रकार के अन्तराय कर्म को, इन तीनों कर्मा शों को एक साथ क्षय करते हैं।' पुनः उत्तराध्ययन के २९ वें अध्ययन के ७२ में बोल में कहा है-'अनगार समुच्छिन्नक्रिय अनिवृत्ति शुक्लध्यान ध्याता हुआवेदनीय, आयु, नाम और गोत्र-इन चार कर्मा शो का एक साथ क्षय करता है। इस प्रकार उत्तराध्ययन और स्थानांग नामक सूत्रागम के प्रामाण्य से તે આ પ્રમાણે છે જ્ઞાનાવરણીય, દર્શનાવરણીય અત્તરાય ઉત્તરાધ્યયનના ૨૯ભાં અધ્યયનના ૭૧ માં બોલમાં કહ્યું છે સર્વપ્રથમ યથાક્રમ અઠયાવીશ પ્રકારના મેહનીયકર્માને ક્ષય કરે છે, પાંચ પ્રકારના જ્ઞાના વરણને, નવ પ્રકારના દર્શનાવરણ કમને અને પાંચ પ્રકારના અન્તરાયકર્મનો આ ત્રણે કમ શોને એકી સાથે ક્ષય કરે છે. પુનઃઉત્તરાધ્યયનના ૨૯માં અધ્યયનના ૭રમાં બેલમાં કહ્યું છે અનગાર સમછિન્નક્રિય અનિવૃત્તિ શુકલધ્યાન ધ્યાને થકે વેદનીય, આયુ. નામ અને ગોત્ર આ ચાર કર્માને એકી સાથે ક્ષય કરે છે. श्री तत्वार्थ सूत्र : २

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