Book Title: Tattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 869
________________ दीपिका-निर्युक्ति टीका अ. ९ सू. ५ अकर्मणा गतिनिरूपणम् ८५३ कर्मणोऽप्यभावस्ततः कर्म सङ्गरा हिस्यात् सङ्गः स्खलनं तद्राहित्यात्, निरङ्गणात् मोहापगमेन तत्रावस्थान कारण भूतरा गले पाभावात्, गतिपरिणामात् तथाविध गतिपरिणामात्, बन्धछेदात् कर्मवच्छेदात, निरिन्धनाद-कर्मरूपेन्धना भावात् तथा पूर्वप्रयोगाच्च स कर्मावस्थायां गतिमन्त्र स्वभावमाश्रित्यापि गति भवति, एवं कारणषट्काद् अकर्मणोऽपि गति भवतीति ॥५॥ मूलम् - चवगयलेव जलट्ठिय तुंबं बिव, विष्फुडियकोस एरंडati विव, इंधणविमुक्तधूमं विव, धणुविमुक्कसायगं विव ॥६॥ छाया - व्यपगतले जलस्थित तुम्बमिव, विस्फुटितकोशैरण्डवीजमिव, इन्धन विमुक्तधूमइव, धनुर्विमुक्त सायकमिव ||६|| इस सूत्र में दिया जाता है सिद्ध जीवों की निःसंग होने के कारण गति होती है, अर्थात् गति में रुकावट डालने वाले कर्म का भी अभाव हो जाने से उनका ऊर्ध्वगमन होता है। दूसरे, मोह के हट जाने से वहां ठहरने के कारणभूत राग का लेपन नहीं रह जाता, इस कारण भी गति होती है । तीसरे, जीव का स्वभाव ही ऊर्ध्वगमन करने का है। चौथे, कर्मबन्धका विच्छेद हो जाता है। पांचवें, कर्मरूपी ईंधन का अभाव हो जाता है। छठे, पूर्वप्रयोग से अर्थात् सकर्म अवस्था में गतिमत्व स्वभाव होने से अकर्म-अवस्था में भी गति होती है । इस प्रकार छह कारणों से सिद्ध जीव की ऊर्ध्ववगति होती है है ||५|| 'ववगयलेव जलट्ठिय' इत्यादि । सूत्रार्थ - लेप के हट जाने पर जल की सतह पर स्थित होने वाले આપવામાં આવે છે નિઃસગ હાવાના કારણે સિદ્ધ જીવાની ગતિ થાય છે, અર્થાત્ ગતિમાં અવરોધ કરનાર કમના પણ અભાવ થઇ જવાથી તેમનુ ઉત્ર ગમન થાય છે. ખીજું મેહુ દૂર થઈ જવાથી ત્યાં રોકાવાના કારણભૂત રાગને લેપ રહેતા નથી એ કારણે પણ ગતિ થાય છે ત્રીજું, જીવના સ્વભાવ જવ ગમન કરવાના છે. ચેાથુ, કાઁબંધના વિચ્છેદ થઇ જાય છે. પાંચમું, કમ રૂપી ઇ ધન ને અભાવ થઈ જાય છે. છઠ્ઠું', પૂવપ્રયાગથી અર્થાત્ સકમ અવસ્થામાં પણ ગતિ થાય છે. આ રીતે છ કારણેાથી સિદ્ધ જીવની વ`ગતિ થાય છે પા 'ववगयज्जलट्टिय' त्याहि । સૂત્રા-લેપના દૂર થવાથી પાણીની સપાટી પર સ્થિત થનાર તુંબડાની શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૨

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