Book Title: Tattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 835
________________ दीपिका-नियुक्ति टीका अ.८ .५३ मनःपर्यवज्ञानस्य वैशिष्टयनिरूपणम् ८१९ भावः । उक्तञ्च भगवती सूत्रे ८ शतके ३ उद्देशके ३२३ सूत्रे-'सम्वत्थोवा मणपज्जवणाणपजवा, ओहिणाणपज्जवा अणंतगुणा, सुयनाणपज्जवा अणंतगुणा, आभिनिधोहियनाणपज्जवा अणतगुणा केवलनाणपज्जवा अणंलगुणा-" इति। सर्वस्तोकाः मनापर्यवज्ञानपर्यवाः अवधिज्ञानपर्यवा अनन्तगुणाः श्रुतज्ञानपर्यवा अनन्तगुणाः, आमिनिबोधिक ज्ञानपर्यवा अन न्तगुणाः, केवलज्ञानपर्यवाः अनन्तगुणाः इति ॥५२॥ मूलम्-मोहणिजणाणदंसणावरणांतरायक्खयाय केवलणाणं ॥५३॥ छाया-मोहनीय ज्ञानदर्शनाचरणान्तरायक्षयाच्च केवलज्ञानम् ॥५३॥ तत्त्वार्थदीपिका-'पूर्व ज्ञानावरणादिकर्मणां सर्वतः क्षये जनिष्यमाणो मोक्षः केवलज्ञानोत्पत्ति कारणमाह-'मोहणिज्न'-इत्यादि । मोहनीयज्ञानदर्शनावरणा भगवतीसूत्र के आठवें शतक के द्वितीय उद्देशक में सूत्र २२३ में कहा है-'मनःपर्ययज्ञान के पर्याय सघ से कम हैं, अवधिज्ञान के पर्याय उससे अनन्तगुणा हैं, श्रुतज्ञान के पर्याय अनन्तगुणा हैं, आभिनियो। धिकज्ञान के पर्याय अनन्तगुणा हैं और केवल ज्ञान के पर्याय अनन्त गुणा हैं ॥५२॥ 'मोहणिज्जणाणदंसणा' इत्यादि । सूत्रार्थ-मोहनीय, ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्म के क्षय से केवलज्ञान की उत्पत्ति होती है ॥५३॥ तत्वार्थदीपिका-ज्ञानावरणीय आदि कर्मों का पूर्ण रूप से क्षय होने पर उत्पन्न होने वाला मोक्ष केवलज्ञान की उत्पत्ति के विना संभव नहीं है, अतएव केवलज्ञान की उत्पत्ति का कारण कहते हैं ભગવતીસૂત્રના આઠમાં શતકના દ્વિતીય ઉદ્દેશકના સૂત્ર ૩૨૩માં કહ્યું છે. મન:પર્યવજ્ઞાનના પર્યાય બધાથી ઓછા છે અવધિજ્ઞાનના પર્યાય તેનાથીઅનન્ત ગણુ છે, આભિનિબંધિકજ્ઞાનના પર્યાય અનન્તગણુ છે અને કેવળજ્ઞાનના પર્યાય અનતગણુ છે | પર | 'मोहणिज्जणाणदसणा' या સવાથ–મોહનીય, જ્ઞાનાવરણ દર્શનાવરણ અને અન્તરાય કર્મના ક્ષયથી કેવળજ્ઞાનની ઉત્પત્તિ થાય છે. છે ૫૩ ! તત્ત્વાર્થદીપિકા--જ્ઞાનાવરણીય આદિ કમેને સંપૂર્ણપણે ક્ષય થઈ જવાથી ઉત્પન્ન થનાર મેક્ષ કેવળજ્ઞાનની ઉત્પત્તિ વગર શકય નથી આથી કેવળજ્ઞાનની ઉત્પત્તિનું કારણ કહીએ છીએ श्री तत्वार्थ सूत्र : २

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