Book Title: Tattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 853
________________ दीपिका-नियुक्ति टीका अ.९ सू.१ मोक्षतत्वनिरूपणम् ३७ मिथ्यादर्शनादीनां बन्धहेतूनामभावाच्चोत्तरजन्मनो-मादुर्भावो भवति, एवं विधा ऽपूर्वजन्मोच्छेदोत्तरजन्मा-ऽमादुर्भावावस्था खलु कृत्स्नकर्मक्षयलक्षणो मोक्षो व्यपदिश्यते । एवञ्च-कृत्स्नकर्मणां क्षयः आत्मपदेशेभ्यः पृथग्भव नरूपं परिशटनम् कर्मराशिप्रध्वंसः आत्मनः स्वस्वरूपावस्थानमेव मोक्षो भवतीति बोध्यम्, नतु-आत्मनोऽपि-अभावो मोक्षावस्थायां भवति । आत्मनो ज्ञानादि परिणामि स्वभावतया तस्य निरन्वयनाशसम्मवात, तदानीमपि-ज्ञानादि परिणामित्वेन स्थितिसम्भवात् । तपः संयमादिना स्थगित सकलाऽऽस्रवद्वारस्य संवरसंवृतस्य परमातिशयसम्पन्नस्य सम्यक्तयाऽनुष्ठायिन श्छद्मस्थस्य सयोगिकेवलिनो निरूद्धसकलयोगस्य च मिथ्यादर्शनादीनां बन्धहेतूनामभावात् । तदावरणीयकर्मआदि का अभाव होने से उत्तर जन्म का प्रादुर्भाव नहीं होना है। इस प्रकार वर्तमान जन्म के उच्छेद से और अगले जन्म का प्रादुभाव न होने से जो समस्त कर्मों से रहित विदेहावस्था प्रास होती है, वही मोक्ष है। इस प्रकार समस्त कर्मों का क्षय, आत्मप्रदेशों से पृथक् होना रूप निर्जरण, कर्मसमूह का प्रध्वंस या आत्मा का स्व-स्वरूप में स्थित होना ही मोक्ष कहलाता है। मोक्ष अवस्था में आत्मा का अभाव नहीं होता है। आस्मा ज्ञानादि परिणाम स्वभाव वाला होने से समूल नष्ट नहीं होता। उस अवस्था में भी ज्ञानादि स्वभाव से उसकी सत्ता रहती है। तप संयम आदि के द्वारा समस्त आस्रवारों का निरोध कर देने वाले, संवरयुक्त, परम अतिशय से सम्पन्न, क्रिया का समीचीन अनु. ष्ठान करने वाले छद्मस्थ, सयोग केवली और सम्पूर्ण योग का निरोध कर देने वाले को मिथ्यादर्शन आदि बन्धकारणों का अभाव हो जाने ઉત્તરજન્મને પ્રાદુર્ભાવ થતો નથી. આ રીતે વર્તમાન જન્મના ઉમે છેદથી અને પુનર્જન્મનો પ્રાદુર્ભાવ ન થવાથી જે સમસ્ત કર્મોથી રહિત વિદેહાવસ્થા પ્રાપ્ત થાય છે તે જ મોક્ષ છે. આમ સમસ્ત કર્મોને ક્ષય, આત્મપ્રદેશોથી પૃથક થવું રૂપ નિર્ધારણ, કર્મ સમૂહને પ્રÁસ અથવા આત્માનું પિતાના સ્વરૂપમાં સ્થિત થવું એ જ મેક્ષ કહેવાય છે. મોક્ષ અવસ્થામાં આત્માનો અભાવ થત નથી. આત્મા જ્ઞાનાદિપરિણામ સ્વભાવવાળે હોવાથી સમૂળગો નષ્ટ થતો નથી, તે અવસ્થામાં પણ જ્ઞાનાદિ સ્વભાવથી તેની સત્તા તો રહે જ છે. તપ, સંયમ આદિ દ્વારા સમસ્ત આઅવઢારોને નિરોધ કરનારી સંવર યુક્ત, પરમ અતિશયથી સમ્પન્ન, ક્રિયાનું સમીચીન અનુષ્ઠાન કરનારા છવસ્થ સાગકેવળી અને સંપૂર્ણ વેગને નિરોધ કરનારાઓને મિથ્યાદર્શન આદિ श्री तत्वार्थ सूत्र : २

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