Book Title: Tattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 847
________________ दीपिका-निर्युक्ति टीका अ.८ स्. ५४ केवलज्ञानलक्षणनिरूपणम् ८३१ ज्ञानी सर्व क्षेत्र जानति पश्यति, कालतः खलु केवलज्ञानी सर्वं कालं जानाति - पश्यति, भावतः खलु केवलज्ञानी सर्वान् भावान् जानाति पश्यति । अथ सर्वद्रव्यपरिणामभाव विज्ञप्ति कारण मनन्तं शाश्वतम् अमतिपाति एकविधं केवलज्ञानम्' इति । तथा चाऽपरिमत माहात्म्यं खलु केवलज्ञानं भवतीति फलितम् ॥ ५४ ॥ इति श्री विश्वविख्यात - जगद्वल्लभ-प्रसिद्धवाचक- पञ्चदशभाषाकलितललितकला पालापकमविशुद्ध गद्यपद्यः नैकग्रन्थ निर्मापक, वादिमानमर्दक- श्रीशाहच्छत्रपति कोल्हापुरराजमदत्त'जैनाचार्य' पदभूषित - कोल्हापुरराजगुरु - बालब्रह्मचारि - जैनाचार्य - जैनधर्म दिवाकर पूज्य श्री घासीलालवतिविरचियां श्री दीपिका - नियुक्ति व्याख्या द्वयोपेतस्य तच्चार्थसूत्रस्याष्टमो ध्यायः समाप्तः ॥८॥ सर्व क्षेत्र को जानता - देखता है, काल से केवलज्ञानी सम्पूर्ण काल को जानता- देखता है और भाव से केवलज्ञानी सकल भावो को जानतादेखता है । 'केवलज्ञान सम्पूर्ण द्रव्यो, भावो और परिणामो को जानने का कारण है, अनन्त है, शाश्वत है, अपतिपाती है और एक प्रकार का है । इससे यह फलित हुआ कि केवल का माहात्म्य अपरिमित है ॥५४॥ जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलालजीमहाराजकृत 'स्वार्थसूत्र' की दीपिका-नियुक्ति व्याख्या का आठवां अध्याय समाप्त ॥ ८॥ કાળથી કેવળજ્ઞાની સમ્પૂર્ણ કાળને જાણે જુએ છે અને ભાવથી કેવળજ્ઞાની સકળ ભાવાને જાણે જુએ છે. કેવળજ્ઞાન સમ્પૂર્ણ દ્રા, અને પરિણામેાને જાણવાનું કારણ છે, અનન્ત છે' શાશ્વત છે, અપ્રતિપાતી છે અને એક પ્રકારનું છે. આનાથી એ ફલિત થયુ` કે કૈવળનુ` મહાત્મ્ય અપરિમિત છે. ૫ ૫૪ ૫ જૈનાચાય જૈનધમ દિવાકર પૂજયશ્રી ઘાસીલાલજી મહારાજકૃત તત્ત્વાર્થ સૂત્ર”ની દીપિકા-નિયુક્તિ વ્યાખ્યાના આઠમા અધ્યાય સમાપ્તઃ ।।૮ાા फ्र શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૨

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