Book Title: Tattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 848
________________ तत्त्वार्यसूत्रे ॥ अथ नवमोऽध्यायः प्रारम्मः॥ मूलम्-सयलकम्मक्खए मोक्खे ॥१॥ छाया-सकलकर्मक्षयो मोक्षः॥१॥ तत्त्वार्थदीपिका-पूर्व तावत्-'जीवाजीवाय वन्धोय पुण्णं पाषासबो तहा। संवरो णिज्जरा मोक्खो संतेए तहिया नव ॥१॥ इत्युत्तराध्ययनानुसा रेणा-ष्टास्वध्यायेषु यथाक्रममेकैकस्मिन्नध्याये जीवादि निर्जरा पर्यन्तानामष्टतत्यानां प्ररूपणं कृतम्, सम्पति-क्रमप्राप्त नवमं मोक्षतत्वं सविशदं प्ररूपयितु नवममध्यायं प्रारमते-पूर्व तत्र मिथ्याष्टित आरभ्य तयोदशगुणस्थान पर्यन्त देशतो निर्जरा भवति । ततः परमयोगिकेवलिनः सर्वकर्मणां क्षयरूपं निर्जरणं भवतीति प्रोक्तम् । सम्पति-सर्वकर्मक्षये पुनः किम्भवतीति प्ररूपयितुमाह-'सयल. नवम अध्याय का प्रारम्भ 'सयलकम्मक्खएमोक्खे। खुत्रार्थ-समस्त कर्मों का क्षय हो जाना मोक्ष है ॥१॥ तत्वार्थदीपिका-"जीव, अजीव, बन्ध, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा और मोक्ष, ये नौ तत्व हैं।" इस उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार पहले आठ अध्यायो में, क्रम से एक-एक अध्ययन में, जीव से लेकर निर्जरा पर्यन्त आठ तत्त्वो की प्ररूपणा की गई, अब क्रमप्राप्त नौवें मोक्ष तत्त्व को विशद प्ररूपणा की जाती है पहले मिथ्यादृष्टि से लेकर तेरहवें गुणस्थान तक देशतः निर्जरा होती है तत्पश्चात् अयोग केवली को मात कर्मों की क्षय रूप निर्जरा होती है, यह कहा जा चुका है। अब यह बतलाते हैं कि समस्त कर्मों નવમા અધ્યાયનો પ્રારંભ– 'सयलकम्मक्खए मोक्खे' સત્રાથ–સમસ્ત કર્મોને ક્ષય થઈ જ મોક્ષ છે કે ૧ | तत्वाहा (५१-७१, ५७१, मन्ध, पुष्य, पाय, मात्र, सव२, નિર્જશ અને મોક્ષ. આ નવ તત્વ છે” આ ઉત્તરાધ્યયનસૂત્રના અનુસાર પ્રથમ આઠ અધ્યાયમાં ક્રમથી એક-એક અધ્યયનમાં જીવથી લઈને નિર્જરાપર્યત આઠ તત્તની પ્રરૂપણા કરવામાં આવી, હવે ક્રમ પ્રાપ્ત નવમાં મેક્ષતત્વની વિશદ પ્રરૂપણ કરવામાં આવે છે પહેલા મિાદષ્ટિથી લઈને તેરમાં ગુણરથાન સુધી દેશતઃ નિર્જરા થાય છે. ત્યારબાદ અગકેવળીને સમસ્તકર્મોનો ક્ષયરૂપ નિર્જરા થાય છે એ કહેવામાં આવી ગયું છે, હવે એ બતાવીએ છીએ કે સમસ્ત કર્મોને ફાય થવાથી શું થાય છે? શ્રી તત્વાર્થ સૂત્રઃ ૨

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