Book Title: Tattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 824
________________ ८०८ तत्त्वार्यसूले द्रव्यतः क्षेत्रतः कालतो भावतश्चेति । एवञ्च-विषयापेक्षयापि अवधिज्ञानतो मना पर्यवज्ञानस्य विशेषोऽवगन्तव्यः । एवं सस्तोकाः खलु मनः पर्यवज्ञानपर्यवा भवन्ति तदपेक्षयाऽवधिज्ञानपर्यबा अनन्त गुणा अवसेयाः तथा च-मनापर्यवज्ञानस्य पर्यवाः सर्वज्ञानापेक्षयास्तोका भवन्ति, तस्य सज्ञानापेक्षया सूक्ष्म पदार्थयाहित्वात् इतिभावः ॥४९॥ मूलम्-मइसुयनाणे-असत्वपज वेसु दव्वसु ॥५०॥ छाया-'मति-श्रुतज्ञानम्-असर्वपर्यवेषु द्रव्येषु ॥५०॥ तत्त्वार्थदीपिका-पूर्व तावत्-सम्यग्ज्ञानस्य मोक्षम्पति कारणतया मतिश्रुता वधिमनःपर्यव केवलज्ञानरूपस्य तस्य प्ररूपणं कृतम्, तत्रापि मोक्षम्पति मुख्य कारणतया केवळज्ञान प्रथमं परूपितम् तदन्तरं मतिज्ञानादिकं क्रमशः प्ररूपितम् से (२) क्षेत्र से (३) काल से और (४) भाव से । इस प्रकार विषय की दृष्टि से भी अवधिज्ञान की अपेक्षा मनःपर्यवज्ञान की विशेषता समझना चाहिए। इस प्रकार मनःपर्यवज्ञान के पर्याय सब से थोडे हैं, उसकी अपेक्षा अवधिज्ञान के पर्याय अनन्त गुणा हैं ॥४९॥ 'मइसुयनाणे' इत्यादि। सूत्रार्थ--मतिज्ञान और श्रुतज्ञान सय द्रव्यों को जानते हैं किन्तु उनके सब पर्यायों को नहीं जानते ॥५०॥ तत्त्वार्थदीपिका--मोक्ष के कारणभूत सम्यग्ज्ञान के मति, श्रुत, अवधि, मनापर्यव और केवलज्ञान के भेदों की प्ररूपणा की गई, उन में भी मोक्ष का प्रधान कारण होने से केवलज्ञान की पहले प्ररूपणा की छ. रमः (१) यथा (२) क्षेत्रथा (3) सथी भने (४) सारथी थे शत વિષયની દષ્ટિએ પણ અવધિજ્ઞાનની અપેક્ષા મન:પર્યયજ્ઞાનની વિશેષતા સમજવી જોઈએ આ રીતે મન:પર્યયજ્ઞાનનાં પર્યાય સૌથી થડા છે. તેની અપેક્ષા અવધિજ્ઞાનના પર્યાય અનંતગણુ છે. 'मइसुयणाणे' त्या સૂવાથ–મતિજ્ઞાન અને શ્રુતજ્ઞાન બધાં દ્રવ્યોને જાણે છે. પરંતુ તેમનાં બધાં પર્યાને જાણતા નથી ! ૫૦ || તત્વાર્થદીપિકા-મોક્ષનાં કારણભૂત સમ્યકૂજ્ઞાનના મતિ, મૃત અવધિ મન:પર્યય અને કેવળજ્ઞાનના ભેદની પ્રરૂપણ કરવામાં આવી. તેમાં પણ મોક્ષ શ્રી તત્વાર્થ સૂત્રઃ ૨

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