Book Title: Tattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिका-नियुक्ति टीका अ.८ सू.३० आभ्यन्तरतपसो व्युत्सर्गाज्यस्य नि. ६९७
तत्वर्थीदीपिका- पूर्व तावद्-सप्तमाध्याये वैयावृत्य-स्वाध्यायो-ध्यानं चाऽऽभ्यन्तरतपः सविस्तरं प्ररूपितम्, साम्पतं षष्ठस्याभ्यन्तरतपसो व्युत्सर्गरूपस्य विशेषतः प्ररूपणं कर्तुमाह-विउस्सग्गे तवे दुविहे, व्वभावमेयओ-' इति । व्युत्सर्ग:-वि-विशेषेण उत् उत्कृष्टभावनया सर्गः-त्यागो व्युत्सर्गः, एतद्रूपं तपो व्युत्सर्गवप उच्यते । तद्-द्रव्योभाक्तश्चेति द्विविधम्, तत्र-द्रव्यच्युत्सर्ग:बाह्य वस्तूनां त्यागः। भाकव्युत्सर्गः आभ्यन्तरवस्तुनस्त्यागः उक्तश्चौपपातिके ३० सूत्रे-से कि तं विउसमगे ? घिउस्सग्गे दुविहे पनत्ते, तं जहा-दव्यविउस्सरगे१ भावविउस्सरगे२ य-" इति, अथ कोऽसौ व्युत्सर्गः १ यु. रसों द्विविधः प्रज्ञप्तः तद्यथा-द्रव्ययुत्सर्ग:-१ भावव्युत्सर्गश्च-२ इति ॥३०॥
सूत्रार्थ---व्युत्सर्ग तप के दो भेद हैं-द्रव्यव्युत्सर्ग और भावव्यु. त्सर्ग ॥३०॥
तत्वार्थ दीपिका-सातवें अध्याय में पहले वैयावृत्य, स्वाध्याय और ध्यान, इन आभ्यन्तर तपों का विस्तार पूर्वक प्ररूपण किया गया, अब छठे आभ्यन्तर तप व्युत्सर्ग की विशेषरूप से प्ररूपणा करते हैं
'व्युत्सर्ग' शब्द का विश्लेषण इस प्रकार है-वि+उत+सर्ग। 'वि' अर्थात् विशेष रूप से, 'उत्' अर्थात् उत्कृष्ट भावना से, 'सर्ग' अर्थात् त्याग करना व्युत्सर्ग कहलाता है। व्युत्सर्ग तप के दो भेद हैंद्रव्यव्युत्सर्ग और भाचव्युत्सर्ग। बाह्य वस्तुओं का त्याग करना द्रव्यव्युत्सर्ग तप है और आभ्यन्तर वस्तुओं का त्याग भावव्युत्सर्ग है। औपपातिक सूत्र के तीसवें सूत्र में कहा हैं
प्रश्न-व्युत्सर्ग के कितने भेद हैं ? उत्तर-व्युत्मर्ग के दो भेद हैं-द्रव्य व्युत्मर्ग और भावव्युत्सर्ग ॥३॥
સૂવાથ–બુત્સર્ગ તપના બે ભેદ છે-દ્રવ્યબુત્સર્ગ અને ભાવવ્યુત્સર્ગ ૩૦ તત્ત્વાર્થદીપિકા-સાતમા અધ્યાયમાં પ્રથમ વૈયાવૃત્ય, સ્વાધ્યાય અને ધ્યાન–આ આભ્યન્તર તપનું વિસ્તારપૂર્વક પ્રરૂપણ કરવામાં આવ્યું, હવે છા આભ્યન્તર ત૫ વ્યુત્સર્ગની વિશેષ રૂપથી પ્રરૂપણ કરીએ છીએ व्युत्त्सा शमन विश्लेषण मा प्रभाधे थाय छ-वि++
स व' અર્થાત્ વિશેષ રૂપથી ઉત્ અર્થાત્ ઉત્કૃષ્ટ ભાવનાથી, “સર્ગ' અર્થાત ત્યાગ કર વ્યુત્સગ તપ છે જ્યારે આભ્યન્તર વસ્તુઓને ત્યાગ ભાવયુત્સર્ગ છે ઔપપાતિક સૂત્રના ત્રીસમાં સૂત્રમાં કહ્યું છે
પ્રશ્ન-બુત્સર્ગના કેટલા ભેદ છે ઉત્તર–વ્યુત્સર્ગના બે ભેદ છે દ્રવ્યબુત્સર્ગ અને ભાવળ્યુત્સર્ગ ૩૦ त०८८
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્રઃ ૨