Book Title: Tattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिका-नियुक्ति टीका अ.८ ५.४५ मतिज्ञानस्य चातुर्विध्यम् ७७३ विषयाणां यदव्यक्तम्-अस्फुटम्-आलोचनमात्रमवधारणं भवति-सोऽवग्रहः उच्यते । ततश्च-सामान्यतोऽवग्रहेणाऽवग्रहीतस्य तस्थैव विषयस्य निश्चयविशेष जिज्ञासा विशेषा काङ्क्षा-ईहा-उच्यते, अहः-तर्क:-परीक्षा-विचारणा-ईहाजिज्ञासा-इत्येते शब्दाः समानार्थका अबसेयाः। ततश्चा-ऽवग्रहेण गृहीतस्य इहया गृहीतस्य तस्यैव विषयस्य सम्यगसम्यग्रवे' त्येवं गुणदोष विचारणाऽवाय उच्यते। ततश्चाऽवायेनाऽवेतस्य तस्यैव विषयस्य या प्रतिपत्तिः मतिस्थिरता साधारणाव्यपदिश्यते । तथा च-प्रथमं चक्षुरिन्द्रियस्य शुक्लादिरूपे विषये सन्निपाते सति चक्षुषा शुक्लं रूप मित्येवं ग्रहणमवग्रहः । ततश्चावग्रहगृहीते शुक्ले रूपे विशेषाकांक्षणमीहा । यथा-शुक्लमिदंकि बलाकारूपं किं वा-पताकारूपं स्यात् इत्येवं जिज्ञासारूपा-ईदा भवति । ततश्व-विशेष निर्ज्ञानात् याथात्मनिश्चयोऽवायः उच्यते । यथा-उत्पाननिपतन पक्षविस्फुरण विक्षेपादिभि बलाकैवेयं, नतु-पताका अव्यक्त -अपरिस्फुट बोध-अंश होता है वह व्यंजनावग्रह कहलाता है और व्यंजनावग्रह के पश्चात् आवान्तर सामान्य जानने वाला ज्ञान अर्थावग्रह कहा जाता है। सामान्य रूप से जाने गये उसी विषय में विशेष को जानने की जो आकांक्षा होती है या जो उपक्रम होता है उसे ईहा कहते हैं । ईहा को ऊह, तक परीक्षा विचारणा या जिज्ञासा भी कहते हैं । ईहा के पश्चात् पदार्थ का विशेष धर्म का निश्चय हो जाना अवाय है । अवाथ के द्वारा जाने हुए विषय में जो प्रतिपाति या मति स्थिरता होती है, उसे धारणा कहते हैं।
चक्षु इन्द्रिय और रूप का यथायोग्य सन्निपात होने पर यह रूप है' इस प्रकार सामान्य ग्रहण होना अवग्रह है । अवग्रह के द्वारा जाने हुए विषय में विशेष को जानने की आकांक्षा होना ईशाज्ञान है। ईहा. ज्ञान यद्यपि विशेष का निर्णय नहीं कर पाता तथापि विशेष की ओर उन्मुख हो जाता है। तत्पश्चात् जब ज्ञान विशेष निश्चय कर लेता है तष वह अवाय कहलाता है, जैसे यह बलाका (बगुला की पंक्ति) ही है, છે. દર્શનો પગ પછી જે અવ્યક્ત, અપરિફુટ બોધ અંશ થાય છે તે વ્યંજના વગ્રહ કહેવાય છે. અને વ્યંજનાવગ્રહની પછી અવા-તર સામાન્યને જાણનારૂ જ્ઞાન અથવગ્રહ કહેવામાં આવે છે. સામાન્ય રૂપથી જાણેલા તે જ વિષયમાં વિશેષ જાણવાની જે આકાંક્ષા થાય છે અથવા જે ઉપક્રમ થાય છે તેને ઈડ કહે છે. ઈહાજ્ઞાન જે કે વિશેષને નિર્ણય કરી શકતું નથી. તે પણ વિશેષની તરફ ઉન્મુખ થઈ જાય છે. ત્યાર પછી જ્યારે જ્ઞાન વિશેષને નિશ્ચય કરી લે છે ત્યારે તે અવાય કહેવાય છે. જેમકે આ બગલાંની હાર જ છે, ધજા નથી.
श्री तत्वार्थ सूत्र :२