Book Title: Tattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
दीपिका-नियुक्ति टीका अ.८ सू.२१ योगप्रतिसंलीनतातपसः निरूपणम् ६५७ वाउदय प्राप्तस्य वा क्रोधस्य विफलीकरणम् १ मानस्योदयनिरोधो वा उदयमाप्तस्य वा, मानस्य विफलीकरणम् २ मायाया उदयनिरोधो वा, उदय प्राप्ताया मायाया विफलीकरणम् ३ लोभस्योदयनिरोधो वा, उदयप्राप्तस्य लोभस्य विफली. करणम् ४ ॥२०॥
मूलम्-जोगपडिसलीणया तवे तिविहे, मणजोगपडिसंलीणयाइ भेयओ ॥२१॥ . छाया--'योगपतिसंलीनता तपस्त्रिविधम्, मनोयोगपतिसंलीनतादि भेदतः ॥२१॥
तत्वार्थदीपिका-पूर्व तावत्-चतुर्विध प्रतिसंलीनता तपः प्रतिपादितम्, तत्र-यथाक्रममिन्द्रियपतिसंलीनताकषायप्रतिसंलीनतातपः प्ररूपितम्, सम्पति
प्रश्न-कषायप्रतिसलीनतो तप के कितने भेद हैं ?
उत्तर-कषायप्रति लीनता तप चार प्रकार का है-(१) क्रोध के उदय का निरोध करना और उदित हुए क्रोध को विफल करना (२) मान को उत्पन्न न होने देना और उत्पन्न मान को विफल करना (३) माया के उदय को रोकना और उदित माया को विफल करना (४) लोभ के उदय को रोकना और उदित लोभ को विफल करना ।२०।
'जोगपडिस लोणया तवे तिविहे'
सूत्रार्थ-मनोयोगप्रति लीनता आदि भेद से योगसंलीनता तप तीन प्रकार का है ॥२१॥
तत्वार्थदीपिका-पहले प्रति संलीनता तप के चार भदों का निर्देश किया गया था, उनमें से क्रम के अनुसार इन्द्रियप्रतिसलीनता और
प्रश्न--४ायप्रतिमानता तपना सा से छे. ?
उत्तर- पायप्रतिसीनता त५ यार १२ना है-(१) अधना या નિરોધ કરો અને ઉદિત થયેલા ક્રોધને બૂઝવી. (૨) માનને ઉત્પન્ન ન થવા દેવું અને ઉત્પન્ન માનને નિષ્ફળ બનાવવું (૩) માયાના ઉદયને રેક અને ઉદય પામેલી માયાને વિફળ બનાવવી. (૪) લેભના ઉદયને રે अन हितासन वि मनावा ॥ २० ॥
'जोगपडिसलीणया तवे तिविहे' त्यादि।
સવાથ–મનોગપ્રતિસંલીનતા આદિના ભેદથી ચોગપ્રતિસંસીનતા તપ ત્રણ પ્રકારના છે કે ૨૧ છે
તત્વાર્થદીપિકા-અગાઉ પ્રતિલીનતા તપના ચાર ભેદોને નિશ કરવામાં આવ્યા હતા, તેમાંથી ક્રમાનુસાર ઈન્દ્રિયપ્રતિસંલીનતા અને કષાય.
त० ८३
श्री तत्वार्थ सूत्र : २