Book Title: Tattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिका-नियुक्ति टीका अ.७ २.५९ चारित्रभेदनिरपणम् ।
छाया-चारित्रं पश्चविधं, सामायिक छेदोपस्थापन परिहारविशुद्धिकसूक्ष्म साम्पराय यथाख्यात भेदतः ॥५९॥
तत्वार्थदीपिका-पूर्व तावत् समितिगुप्तिधर्मानुप्रेक्षा परीषहजय चारित्राणां कर्मास्त्रवनिरोधलक्षणसंवरहेतुत्वेन पतिपादितत्वात् तेषां खलु संवरहेतूना मध्ये चारित्रसंज्ञाव्यपदेशार्थ प्रथमं चारित्रभेदान् पतिपादयितुमाह-'चरितं पंच विहं.' इत्यादि । चारित्रं तावत्-पूर्वोक्तदशविधश्रमणधर्मान्तर्भूतं संयमात्मक पश्चविधं वर्तते, सामायिक १ छेदोपस्थापन २ परिहारविशुद्धिक ३ सूक्ष्मसाम्पराय ४ यथाख्यात ५ भेदतः। तथा च-सामायिकचारित्रम् १ छेदोपस्थापन. चारित्रम् २ परिहारविशुद्धिकचारित्रम् ३ सूक्ष्मसाम्परायिकचारित्रम् ४ यथाख्यात चारित्रञ्चे ५ स्येवं पञ्चविधं चारित्रमवगन्तव्यम् । समः-सम वं रागद्वेषरहितत्वेन
'चरितं पंचविहं सामाइय' इत्यादि।
सूत्रार्थ-चारित्र पांच प्रकार का है-(१) सामायिक (२) छेदोपस्था. पमीय (३) परिहार विशुद्धि (४) सूक्ष्मसाम्पराय और (५) यथाख्यात ५९।
तस्वार्थदीपिका-पहले प्रतिपादन किया गया था कि समिति, गुप्ति धर्म अनुप्रेक्षा, परीषह जय और चारित्र संघर के कारण हैं। इन संबर के हेतों में से चारित्र का स्वरूप प्रतिपादन करने के लिए उसके भेदों का निर्देश करते हैं
पूर्वोक्त दस प्रकार के श्रमण धर्मों के अन्तर्गन संयमात्मक चारित्र पांच प्रकार का है-(१) सामायिक (२) छेदोपस्थापनीय (३) परिहार विशुद्धिक (४) सूक्ष्मसाम्पराय और (५) यथाख्यात । इस प्रकार चारित्र पांच प्रकार का समझना चाहिए।
'चरित्तं पंचविहं' इत्यादि ।।५९।।
सूत्राथ-यारित पाय प्रा२ना -(१) सामायि: (२) छे।५२थापनीय (3) परिडा२विशुद्धि (४) सूक्ष्मसा-५२राय मने (५) यथाभ्यात. ॥५६॥
તત્વાર્થદીપિકા–પહેલા પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું હતું કે સમિતિ, ગુપ્તિ, ધર્મ, અનુપ્રેક્ષા, પરીષહજય અને ચારિત્ર, સંવરના કારણ છે. આ સંવરના હેતુઓ માંથી ચારિત્રના સ્વરૂપનું પ્રતિપાદન કરવા માટે તેના ભેદનું નિદર્શન કરીએ છીએ
પૂર્વોક્ત દશ પ્રકારના શ્રમણધર્મોના અન્તર્ગત સંયમાત્મક ચારિત્ર પંચ मारना छ-(१) सामा४ि (२) छेहपश्थापनीय (3) परिहार विशुद्धि (૪) સૂમસાપરાય અને (૫) યથાખ્યાત આવી રીતે ચારિત્ર પાંચ પ્રકારના સમજવા જોઈએ,
श्री तत्वार्थ सूत्र : २