Book Title: Tattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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तत्वार्थसूत्रे उक्तश्च सूत्रकृताङ्गे प्रथमश्रुतस्कन्धे १५ अध्ययने तृतीयगाथायाम्-'मैत्री भूतेषु कल्पयेत्' इति । एवम्-औपपातिके प्रथम सत्रे २० प्रकरणे चोक्तम्'सुपडियाणंदा' इति । पुनस्तत्रैवोपपातिके भगवदुपदेशे चोक्तम्-'साणुको सयाए' सानुक्रोशतया इति आचाराङ्गपकरणे श्रुतस्कन्धे ८ अध्ययने ७ उद्देशे ५ गाथायाश्चोक्तम्
'मज्झत्थो निज्जरापेही, समाहिमनुपालए' इति ।
मध्यस्थो निर्जरापेक्षी, समाधिमनुपालयेत् ।।इति॥५८॥ मूलम्-चरितं पंचविहं सामाइय छेदोक्टावणपरिहारविसुद्धिय सुहमसंपराय जहखायभेयओ ॥५९॥ करना ही उचित है । कहा भी है-'दूसरों के हित की चिन्ता करना मैत्री है, पराये दुःख का निवारण करना करुगा है, दूसरे के सुख को देखकर सन्तोष मानना प्रमोद है और पराये दोषों की उपेक्षा करना उपेक्षा भावना है ॥१॥
सूत्र कृतांग के प्रथम श्रुतस्कंध के पन्द्रहवें अध्ययन की तीसरी गाथा में कहा है-'प्राणियों पर मैत्री धारण करे। इसी प्रकार औप. पातिक सूत्र के प्रथम सत्र के २० वें प्रकरण में भी कहा है-'सुप्रत्या नन्दः-प्रमोदः' । इसी सूत्र में भगवान् के उपदेश-प्रकरण में कहा है'साणुक्कोसघाए' अर्थात् दया युक्तता से । आचारांग श्रुतस्कंध के आठवें अध्ययन, सातवें उद्देशक की पांचवीं गाथा में कहा है___ 'मध्यस्थ एवं निर्जरा की अपेक्षा करने वाला श्रमण समाधि का अनुपालन करे ॥५८॥ ચિન્તા કરવી મૈત્રી છે, બીજાના દુઃખનું નિવારણ કરવું કરૂણા છે, બીજાના સુખને જોઈ સતેષ માન અમે દ છે, અને પારકા દોષોની ઉપેક્ષા કરવી ઉપેક્ષા ભાવના છે. જેના
સૂત્રકૃતાંગને પ્રથમ શ્રતસ્કંધના પંદરમાં અયનની ત્રીજી ગાથામાં કહ્યું છે-“પ્રાણિઓ પર મૈત્રી ધારણ કરો' એ જ પ્રમાણે પપાતિકસૂત્રના प्रथम सूत्रना, २० मा ४२५मां ५५ धुं छे-सुपत्यानन्ह-प्रमोह. भor सूत्रमा मापानना १५३ ५४२मा घुछ. 'माणुकोसयाए' अर्थात् ४या. યુક્તતાથી આચારંગ શ્રતસ્કંધના આઠમાં અધ્યયન, સાતમા ઉદ્દેશકની પાંચમી ગાથામાં કહ્યું છે-“મધ્યસ્થી અને નિર્જરાની અપેક્ષા કરનાર શ્રમણ સમાધિનું અનુપાલન કરે. ૫૮
श्री तत्वार्थ सूत्र : २