Book Title: Tattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिका-निर्युक्त टीका अ.७ सू. ६५ वैयावृत्यस्य भेदनिरूपणम्
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यथायोगं क्षेत्र - वसति - प्रत्यवेक्षण भक्तपानवस्त्रपात्रौषध भैषजशरीर शुश्रूषादिरूप मवगन्तव्यम् तत् खलु वैयावृश्यम् - आचार्योपाध्यायस्थविरतपस्विशैक्ष ग्लानकुलगण संघ साधर्मिकभेदतो दशविधं भवति । तत्राऽऽवरति आचारयति वा धर्मादिकमित्याचार्य स्तस्य वैयावृत्यम् - आचार्यवैयावृत्त्यम् १ उपाध्यायस्य वैयावृत्त्यम् उपाध्यायवैयावृत्त्यम् -२ स्थविरस्य वयसा पर्यायेण श्रुतेन दृद्धस्य वैया. वृत्यं स्थविरवैयावृत्यम् ३ चतुर्थषष्ठाऽष्टमभक्तादिविविधतपकारक स्तपस्वी तस्य वैयावृत्त्यं तपस्वित्रैयावृत्त्यम् ४ एकदिनादारभ्य षण्मासाऽवधि दीक्षायुक्तस्य नवदीक्षितस्य शैक्षस्य वैयावृत्यं शैक्षवैयावृत्त्यम् ५ ग्लानस्य - रुग्णस्य व्याध्यमि
वृत्य कहलाता है । उसे यथायोग्य क्षेत्र - वसति प्रत्यवेक्षण, भक्तपान, वस्त्र, पात्र, औषध भेषज, शरीर शुश्रूषा आदिरूप समझना चाहिये, अर्थात् इन सब के द्वारा सेवा करना वैयावृत्य है । सेव्य के भेद से वैयावृत्य के दस भेद हैं (१) आचार्य (२) उपाध्याय (३) स्थविर (४) शैक्ष (५) ग्लान ( ६ ) तपस्वी (७) साधर्मिक (८) कुल (९) गण १० संघ का वैयावृत्य । जो स्वयं पांच आचार रूप धर्म का पालन करता है और दूसरों से पालन करवाता है वह आचार्य कहलाता है) उस के वैयावृत्य को आचार्य वैयावृत्य कहते हैं । (२) उपाध्याय की सेवा करना उपाध्याय वैयावृत्य है । (३) स्थविर अर्थात् वय दीक्षापर्याय और श्रुतसे जो वृद्ध है उसकी सेवा करना स्थविर वैयावृत्य हैं । (४) एक दिन से लेकर छहमास तक का दीक्षित नव दीक्षित या शैक्ष कहलाता हैं । उसका वैयावृत्य शैक्षवैयावृत्य है । (५) ग्लान अर्थात् मुडेवाथ छे. तेने यथायोग्य क्षेत्र-वसति - प्रत्यवेक्षण, लत्त-पान, वस्त्र, पात्र, ઔષધ, ભેષજ, શરીર શુશ્રુષા આદિ રૂપ સમજવું જોઇએ અર્થાત્ આ બધા વટ સેવા કરવી વૈંયાનૃત્ય છે. સૈન્યના ભેદથી વૈયાવૃત્યના દેશ ભેદ છે-(૧) आयार्य (२) उपाध्याय (3) स्थविर (४) शैक्ष (4) उद्यान (१) तयस्वी (७) साधभिः (८) हुण (4) आयु सने (१०) संधनुं वैयावृत्य के स्वय पांथ આચાર રૂપ ધર્મનું પાલન કરે છે અને ખીજાએ મારફતે પાલન કરાવે છે આચાય કહેવાય છે. તેના બૈંયાનૃત્યને આચાય વૈયાવૃત્ય કહે છે. (૨) ઉપાધ્યાયની સેવા કરવી ઉપાધ્યાયનૈયાનૃત્ય છે. (૩) સ્થવિર અર્થાત્ થય, દીક્ષાપર્યાય તથા શ્રુતથી જે વૃદ્ધ છે તેમની સેવા કરવી સ્થવિર વૈયાવૃત્ય છે. (૪) એક દિવસથી લઈને છ માસ સુધીના દીક્ષિત નવદીક્ષિત અથવા શૈક્ષ કહેવાય છે. તેનુ વૈયાવૃત્ય શૈક્ષવૈયાવૃત્ય છે. (૫) પ્લાન અર્થાત્ રાગી, જે
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૨