Book Title: Tattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिका-नियुक्ति टीका अ. सू. ६४ विनयरूपाभ्यन्तरतपसो भेदनि० ४८३ ___ मूलम्-विणए सत्तविहे, णाणदंसणचरित्तमणवइकायलोगोवयारभेयओ॥६४॥
छाया-'विनयः सप्तविधः, ज्ञान-दर्शन-चारित्र-मनो-चचा-कायलोकोपचारभेदतः ॥६॥
तत्वार्थदीपिका-पूर्वसूत्रे-प्रायश्चित्तविनय वैयावृत्यादि पइविधाभ्यन्तरतपसा प्रथमोपात्तस्य प्रायश्चित्तस्याऽऽलोचनप्रतिक्रमणादिदशभेदानां प्ररूपणं कृतम् सम्मतिक्रममाप्तस्य द्वितीयस्य विनयरूपस्याभ्यन्तर तपसो भेदान् प्ररूप. यितुमाह-'विणए सत्तविहे' इत्यादि । विनय:-विनीयतेऽपनीयते क्षिप्यते ज्ञानावरणाघष्टविध कर्मरजोराशियेन स विनयः सप्तविधा ज्ञान-दर्शन-चारित्रमनो-वच:-काय-लोकोपचारभेदतः। तथा च ज्ञानविनयः १ दर्शनविनयः २
'विणए सत्तविहे गाण' इत्यादि
सूत्रार्थ-विनय सात प्रकार का है-(१) ज्ञान (२) दर्शन (३) चारित्र (४) मन (५) वचन (६) काय और (७) लोकोपचार ॥६४॥
पूर्वसूत्र में प्रायश्चित्त विनय वैयावृत्य आदि छह प्रकार के आभ्यन्तर तपों में से प्रायश्चित्त के आलोचन प्रतिक्रमण आदि दस भेदों का निरूपण किया गया, अब क्रमप्राप्त विनय नामक आभ्यन्तर तप के भेदों की प्ररूपणा करते हैं
जिसके द्वारा ज्ञानावरण आदि आठ प्रकार का कर्म-रज विनीत किया जाय-हटाया जाय उसे विनय कहते हैं । वह ज्ञान, दर्शन, चारित्र, मन, वचन, काय और लोकोपचार के भेद से सात प्रकार है अर्थात उसके सात भेद हैं, यथा--(१) ज्ञानविनय (२) दर्शन
'विणए सत्तविहे गाणदंसण' त्यात
सूत्राय-विनय सात ५४२ने। छ-(१) ज्ञान (२) शन (3) यात्रि (४) मन (५) क्यन (6) आय भने (७) पियार. ॥१४॥
તત્વાર્થદીપિકા–પૂર્વસૂત્રમાં પ્રાયશ્ચિત્ત વિનય વૈયાવૃત્ય આદિ છે પ્રકારના આભ્યન્તર તપમાંથી પ્રાયશ્ચિત્તના આલેચન પ્રતિક્રમણ આદિ દશ ભેદનું નિરૂપણ કરવામાં આવ્યું, હવે ક્રમ પ્રાપ્ત વિનય નામક આવ્યન્તર તપના ભેદની પ્રરૂપણું કરીએ છીએ
જેના વડે જ્ઞાનાવરણ આદિ આઠ પ્રકારના કમ–૨જ વિનીત કરવામાં भाव-२ ४२वामां आवे तेन विनय . ते ज्ञान, शन, यास्त्रि, मन, વચન, કાયા અને લોકે પચારના ભેદથી સાત પ્રકારને છે અર્થાત
श्री तत्वार्थ सूत्र : २