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प्रार
वैराग्य प्रन्थोंमें बतलाया हुआ वस्तुस्वरूपका बोधबहुत ही उपयोगी है।
सामान्यतया देखा जाय तो आधुनिक कालमें साधनका बहुत अभाव जान पड़ता हैं। सामान्य पुरुषोंकी प्रवृत्ति मेहनतकरनेकी
ओर नहीं होती है और उनको मौज शौक बहुत प्रिय वर्तमान परिस्थिति होता है। इस बाबतके अपवादभूत कई पुरुष होते हैं,
परन्तु जो मौजशौकका स्वरूप नहीं समझते हैं । पौद् गलिक भावकी गृद्धि व्यर्थ और झूठी है. इसको समझनेके लिये ऐसे प्रन्थोंकी अत्यन्त आवश्यकता है। दूसरा कम परिश्रम करनेवालोंको अपनी भाषामें सरल और समझ में आसके इस प्रकार यदि उपदेश किया जाय तब ही ये किसी ग्रन्थको पढ़नेका विचार करते हैं अन्यथा कदापि नहीं । इसलिये उनकी भाषामें अमुक साध्य लक्ष्यमें रखकर इस ग्रन्थ और इसके विवेचनमें वैराग्य विषयको प्रतिपादन किया गया है । धनाढय धनका उपार्जन और रक्षण इतनी अधिक सावधानीसे करनेमें तत्पर रहते हैं कि धनका वास्तविक स्वरूप क्या है ? वह किसका है और कब तक रहनेवाला है ? इन सर्व बातोंको भूल जाते हैं ऐसा धनवान् वर्ग प्राचीनकालमें भी था और वे बहुधा धनप्राप्तिके प्रयास में ही अपना जीवन व्यतीत करते थे। इसलिये धनवानोंके लिये अध्या. त्मग्रन्थोंकी उपयोगिता प्राचीनकाल में भी थी और आधुनिक कालमें भी है। धनी और निर्धनियोंका भेद दिनप्रतिदिन अत्याधिक बढ़ता जाता है और भी ज्यों ज्यों मील आदि उद्योग बढ़ते जावेगें त्यो त्यो यह भी बढ़ता जायगा । ऐसे समयमें निर्धन प्राणियोंको तो सम्पूर्ण जीवन पर्यन्त कठिन परिश्रम करने पर भी पूरा उदरपोषण अत्यन्त कठिन हो रहा है। ऐसे प्राणियोंके लिये वैराग्यका विषय अत्यन्त लाभकारी है । वैरोग्यके विषयमें मुख्यतया यह ध्यानमें रखना चाहिये कि यह दुनियामें सर्व प्रकारका वैराग्य उपजोकर केवल उसको त्याग करनेका ही उपदेश नहीं करता है, परन्तु जिस प्रकार हो सके उसप्रकार आसक्तिभाव कम करनेका विशेषतया उपदेश करता है। पौद्गलिक भाव सयोगोंके कारण कदाच छरेडा न जा सकता हो तो फिर उसमें आसक्ति कम रखना चाहिये यह ही मुख्य कर्तव्य है। इस भवमें हो जहां सब सुख लेनेका उपदेश मिलता हो, शिक्षण