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है और यह वैराग्य ग्रन्थों में अथवा अध्यात्म ग्रंथोंमें विशेषतया बताया हुआ होता है ।
इस जमानेकी कितनी हो विशेषतायें हैं । वस्तुस्वरूपका सम्पूर्ण शान नहीं होता है और शिक्षण वातावरण नवीन पद्धति अनुसार मि.
___ लता है इसलिये शिक्षितवर्गका एक बहुत बड़ा भाग आधुनिक वातावरण. जड़वादी ( Materialist ) बन जाता है। स्पेन्सर,
मील, हीगल आदि के लेख इसकी पुष्टि करते हैं। इसप्रकार का वाद उन्नति का विरोधक है, क्योंकि जहां आरमाका आस्तित्व ही स्वीकृत न किया जाता हो वहां उसकी उन्नति तथा अवनतिका विचार ही क्यों कर आ सकता है ? अात्मिक ज्ञान जब अनुभवपूर्वक लिया जाता है तब ही सचमुच लाभदायक सिद्ध होता है और वैसे शानकी ही बहुत आवश्यकता है। नवीन संस्कारवाले प्रणी तो इस भवके जंजालमें इतने अधिक लिप्त हो जाते हैं कि उनको परभवके लिये विचार तक करनेका अवकाश नहीं मिलता है, कहीं कहीं जीवनकलह भी बढ़ता जाता है, जिससे उदरपूर्तिके व्यवसायमें ही. सुबहकी शाम और शाम की सुबह हो जाती है । कुदरतके सामान्य नियमके विरुद्ध अधिक समय तक काम करना पड़ता है और वरसके बारह महिनोंमें एक या दो महिने भी निवृति नहीं मिल सकती है। इसप्रकार पश्चास पिच्चोत्तर वर्षका जीवन पूर्ण होता है और बिना किसी भी साध्यको सिद्ध किये ही जीनवका अन्त हो जाता है। बड़े २ शहरोंमें यह स्थिति विशेषतया द्रष्टिगोचर होती है। छोटे छोटे शहरोंकी प्रवृति भी इसी अोर होती जाती है, तथा ग्रामोंमें आलस्यका साम्राज्य होने से वहां भी पात्मिक उन्नति बहुत कम होती है । इसप्रकार शिक्षित समुदायके आत्मिक ज्ञान प्राप्त करनेके मानसिक और स्थूल प्रसंग कम होते हैं यह स्पष्ट ही है। उनको वस्तुस्वरूपके ज्ञानकी बहुत आवश्यकता है। जो शिक्षित हों, नियमानुसार कार्य करनेवाले हों उनके लिये कोई भी उपयोगी बाबत एक मात्र समझनेकी ही आवश्यकता है । यदि उनके ध्यानमें यह पाजाव की आत्मिक ज्ञान प्राप्त करनेकी आवश्यकता है तो फिर चाहे जो भी क्यों न करना पड़े परन्तु वे उसके लिये समय अवश्य निकाल सकते हैं । इसलिये इस वर्गको