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ऐसे प्रन्थकी द्रव्यानुयोगके विषय गौणरूपसे आत्माके साथ आवश्यकता सम्बन्ध रखते हैं तो फिर आत्मा स्वयं कौन है ?
___ उसकास्वरूप क्या है ? उसका विषयकषायादिके साथ क्या सम्बन्ध है ? कितने समय तकका है ? प्रात्माका साध्य क्या है ? वह कैसे और कब प्राप्त हो सकता है ? श्रादि अनेक अत्यावश्यक आत्मा सम्बन्धी विषय अध्यात्मशास्त्रमें चचित हैं, इसलिये वह प्रात्माको सहजमें बहुत उपयोगी है। गणितानुयोगसे बुद्धि विकस्वर होती है, कथानुयोगसे हुई श्रद्धा द्रढ़ होती है और शुद्ध चारित्रवानका अनुकरण करनेकी इच्छा होती है, चरणकरणानुयोगसे आत्मा स्वस्वरूप प्राप्त करनेके प्रयासमें उद्यमवंत होता है-ये सब आत्मिक उन्नतिमें गौणरूपसे सहायक होते हैं; परन्तु अध्यात्मशास्त्र तो आत्माके लिये प्रत्यक्षरूपसे उपयोगी हो सके ऐसी वस्तुओं और वस्तुतत्वोंको निरन्तर उसके सामने लाके पेश करता है। अध्यात्मशास्त्रका मुख्य विषय वैराग्य है। सांसारिक सर्व वस्तुओंपरसे रागको दूर कर देना यह वैराग्यका मुख्य विषय है। सांसारिक पदार्थोंमें किन किनका समावेश होता है यह विचार कईबार आता है। इसमें सर्व पौद्गलिक वस्तुप्रोंका समावेश हो जाता है । इस जीवको घडी तथा प्रालमारी तथा कोच देख लेनेपर उनको खरीदने की इच्छा होगी, यदि वे मिल भी जावेंगे तो उनपर पालिस करानेकी इच्छा होगी, पालिस होजानेपर यदि कोई उनको छुयेगा अथवा उनको खराब करेगा तो यह उसे बर्दास्त न कर सकेगा। इसप्रकार अजीव पदार्थपर रागदशाके कारणसे ममत्व पैदा होता है । इसी प्रकार अपने निजके कपड़े आभूषण और धनपर ममत्व होता है। यह ममत्व इतना द्रढ़ होता है कि बहुधा शरीरपरके ममत्वसे भी यह अधिक बढ़ जाता है। धनके ममत्वसे प्राणो चाहे जैसा दुर्वचन बोलता है, चाहे जिससे भी लडाई झगडा करनेको तैयार हो जाता है, अपनी प्रशंसा करता है और चाहे जैसे अकृत्य, अप्रमाणिकपन या हिंसा करनेमें आगा पिछा नहीं सोचता है। इसीप्रकारका ममत्त्व अपने पुत्र, स्त्री और अन्य सम्बन्धियोंपर होता है। इसके परिणामस्वरूप जीव अनेक प्रकारके नाटक खेलता है, खेल करता है और बालचेष्टा करता है । इसीप्रकारका परन्तु सबसे अधिक संख्त अपने