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( २१ ) सोमशर्माकी भेजी हुई भेंटको देखा तो वे सोमशर्मा के मनके भीतरी अभिप्रायको न समझ उसके विनय भाव पर आतिशय मुग्ध होकर उसकी बारंबार प्रशंसा करनेलगे और भेंटसे अपनेको धन्यभी मानने लगे। ___ ऊपरसे ही मनोहर घोड़ाको देख वे मुक्त कंठसे यह कहने लगे कि अहा यह राजा सोमशर्मा का भेजाहुआ घोड़ा सामान्य घोड़ा नहीं है किंतु समस्त घोड़ाओंका शिरोमणि अश्वरत्न है । मेरी घुड़सालमें ऐसा मनोहर घोड़ा कोई हैं ही नहीं । ऐसा कहते कहते उस घोड़ाकी परीक्षा करनेकेलिये वे अपने आप उसपर सवार होगये, और चढ़कर मार्गमें अनेक प्रकारकी शोभाओंको देखते हुवे एक वनकी और रवाने हुये ।
जिससमय महाराज उपश्रेणिक बनके मध्यभागमें पहुंचे और आनंदमें आकर घोड़ेके कोड़ा लगाया फिर क्या था ? कोड़ा लगते ही वह अशिक्षित एवं दुष्ट धोड़ा उछलकर वातकी वातमें ऐसे भयंकर वनमें निर्भयतासे प्रवेश करगया जहां अजगरोंके फूत्कार शब्द होरहे थे, रीछभी भंयकर शब्द कर रहे थे, बड़े बड़े हाथी भी चिंघार रहे थे और वंदर वृक्षोंसे गिरपड़नेपर भयंकर चीत्कार शब्द कररहे थे एवं जहां तहा भांति भांतिके पक्षियोंके भी शब्द सुनाई पड़ते थे । घोडेने उसवनमें प्रवेशकर, महाराज उपश्रेणिकको
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