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श्रेणिक अपनी सुन्दरता आदि संपदाओंसे संपन्नथा। जिसे देख उसके माता पिता अत्यंत तुष्ट रहते थे। श्रेणिकके अतिरिक्त महाराज उपश्रेणिकके पाँच सो पुत्र और भी थे जो अत्यन्त पुण्यात्मा और उमत्तोत्तम शुभ लक्षणोंसे भूषित थे ।
महाराज उपश्रेणिकके देशके पासही उस का शत्रु चन्द्रपुरका राजासोमशा रहता था जो अपने पराक्रमके सामने समस्तजगतको तुच्छ समझता था । जिस समय सहाराज उपश्रेणिकको यह पता लगा कि चन्द्रपुरका स्वामी सोमशर्मा अपने सामने किसीको पराकमी नहीं समझता, तो उन्होंने शीघही उसे अपने अधीन करनेका विचार कर अनेक उपायों से उसे अपने अधीन तो करलिया पर उसे पुनः ज्योंका त्यों राज्या धिकार दे दिया । सोमशर्मा जब महाराज उपश्रेणिकसे हारगया तो उसको बहुत दुःख हुवा और उसने मनमें यह बात ठानली कि महाराज उपश्रेणिकसे इस अपमान का वदला किसी न किसी समय पर अवश्य लूंगा । तदनुसार उसने एकदिन यह चालकी कि सुवर्ण धन धान्य मनोहर वस्त्र और उत्तमोत्तम आभूषणकी भेट महाराज उपश्रेणिककी सेवामें भेजी उसकेसाथ एक वीतनामका घोड़ाभी भेजा । यह घोडा देखनमें सीधा पर सर्वथा अशिक्षित अतिशय दुष्ट एवं अत्यंत ही धोखेबाज था ।
जिससमय महाराज उपश्रेणिकने चन्द्रपुरके राजा
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