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ग्यारहवां सर्गः मुनिवर जिनपालद्वारा वचनगुप्ति कथाके समाप्त होजाने पर राजा रानीने उन्हें भक्तिपूर्वक नमस्कार किया । धर्मप्रेमी वे दोनों दम्पती मुनिवर मणिमालीके पासमये । उन्हें भक्तिपूर्वक नमस्कारकर राजाश्रेणिकने विनयसे पूछ । ___ संसारतारकत्वामिन् ! 'मेरे अभोदयसे आपरराजमंदिरमें आहारार्थ गये थे । किंतु आप । विनाकारण वहांसे आहारके विनाही लौट आये । यह क्या हुवा ? मेरे मनमें इसवातका बड़ा संशय बैठा है कृपया इसमेरे संशयको शीघ्र मिटावें । राजा श्रेणिकने ऐसे वचन सुन मुनिराजने कहा___राजन् । रानीचेलनाने हे त्रिगुप्ति पालक मुनिराज आप
आहारार्थ राजमंदिरमें विराजें' इसरीतिसे . हमारा आह्वानन किया था । मेरे कायगुप्ति थी नहीं इइसलिये मैं वहां आहार केलिये न ठहरा । वह क्यों नहिं थी उसका कारण सुनाता हूं आप ध्यान पूर्वक सुनें -
इसी पृथ्वीतलमें अतिशय शुभ एक मणिवत नामका देशहै । मणिवत - साक्षात् समस्तदेशोंमें मणिके समानहै । मणिदेशमें (अधरता ) धन विद्या आदिकी असहायता हो यह बात नहीं है वहांके निवासी धनी एवं विद्वान धन और विद्या से बराबर सहायता करनेवाले हैं । एकमात्र अधरता है तो
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