________________
( २६६ )
~~
तबसे वहां के निवासी श्रावक बड़ा दुःख मान रहे हैं । आपके चले आनेसे वे अपने को भाग्यहीन समझते हैं । और अहोरात्र आपके दर्शनोंके लिये लालायित रहते हैं । कृपा कर एक समय आप जरूर ही उज्जयनी चलें और उन्हें आनंदित करें पीछे आपके आधीन वात हैं चाहें आप जायें या न जावे | जिनदत्तकी ऐसी वचन भंगी सुन मैं अवाक् रहगया मु शीघ्र ही उसके भीतरी अभिप्रायका ज्ञान होगया । धनके लिये उसका ऐसा वर्ताव सुन मैं अपने मनमें ऐसा विचार करने लगा ।
यह धन बड़ा निकृष्ट पदार्थ है । यह दुष्ट, जीवों को घोरपापका संचय करानेवाला और अनेक दुःख प्रदान करने वाला है । हाय !!! जो परम मित्र है अपना कैसा भी आहेत नहिं चाहता वह भी इस धनकी कृपासे परम शत्रु बन जाता है और अनेक अहित करनेकेलिये तयार होजाता है । प्राण प्यारी स्त्री इसधनकी कृपासे सर्पिणीके समान भयंकर बन जाती है । जन्मदात्री, सदा हित चाहनेवाली, माता भी धन के चक्र में पड़कर भयंकर व्याघ्री वन जाती है-- धनके लिये पुत्रके मारने में वह जरा भी संकोच नहि करती । धनके फेर में पड़कर एक भाई दूसरे भाईका भी अनिष्ट चिंतन करने लग जाता है । पिता भी धनकी ही कृपासे अपनेको सुखी मानता है । यदि कुटुंबी धन नहिं देखते हैं तो जहां तहां निंदा करते
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com