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जूद है मत्त हाथियोंके गंडस्थल विदारण करनेमें चतुरभी सिंह उसे कष्ट नहि पहुंचा सकता । आपके चरणसेवी मनुष्यका कल्पांतकालीन और अपने फुलिंगोंसे जाज्वल्यमान अमिभी कुछ नहिं कर सकती । महामुने ! जिस मनुष्यके हृदयमें आपकी नाम रूपी नाग दमनी बिराजमान है । चाहै सर्प कैसा भी भयंकर हो उस मनुष्यके देखतेही शीघ्र निर्विष होजाता है। दयासिंघो ! जो मनुष्य आपके चरणरूपी जहाजमें स्थित है चाहै वह वड़वानलसे व्याप्त, ताके मगर आदि जीवोंसे पूर्ण समुद्रमें ही क्यों न जा पड़े बातकी बातमें तैरकर पारपर आ जाता है । जितेंद्र ! जिन मनुष्योंने आपका नामरूपी कवच धारण कर लिया है वे अनेक भाले, बड़ेर हाथियोंके चीत्कारोंसे परिपूर्ण, भयंकर भी संग्राममें देखते२ विजय पालेते हैं। कोढ़ जलोदर आदि भयंकर रोगोसे पीडित भी मनुष्य आपके नामरूपी परमौषधिकी कृपासे शीघ्रही नीरोग होजाता है । गुणाकर ! जिनका भंग संकलोंसे जिकड़ा हुआ है। हाथ पैरोंमें बेड़ियां पडी है यदि ऐसे मनुष्यों के पास आपका नामरूपी अद्भुत खड्ग मोजूद है तो वे शीघ्रही बंधनरहित होजाते हैं । प्रभो ! अनादिकालसे संसाररूपी घरमें मम अनेक दुःखोंका सामना करनेवाले जीवोंके यदि शरण हैं तो तीनों लोकमें आपही हैं। प्रभो ! कथंचित् गणनातीत मैं आपके गुणोंकी गणना करता हूं। कृपानाथ ! गंभीर गणनातीत प्रसन्न परम पसं इतने गुणही
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