Book Title: Shrenik Charitra Bhasha
Author(s): Gajadhar Nyayashastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 373
________________ (३५२) memarrrrr...xxx.rrrrrrrrrrr......... .........www.rrrrrrrrrrrm चोर शीघ्रही चला तथा सेठि श्रीकार्तिके घर जाकर और हार चुराकर अपनी चतुरतासे बाहर निकल आया । हार बड़ा चमकदार था इसलिये चोर ज्योंही सड़क पर आया और ज्योंही कोतवालने हारका प्रकाश देखा लेजानेवालको चोर समझ शीघ्रही उसके पाछै धावा किया । चोरको और कोई रास्ता न सूझा वह शीघ्रही भगतार श्मसान भूमिमें घुस गया । जब वह श्मसानभूमिमें घुसा तो उसै आगेको वहां कोई रास्ता न दिखा इसलिये उसने शीघ्रही कुमार वारिषेणके गलेमें हार डाल दिया और आप एक ओर छिप गया । हारकी चमकसे कोतवाल भगता२ कुमारके पास आया। कुमारको हार पहिने देख शीघ्रही दोड़ता२ राजाके पास पहुंचा और कहने लगा-- ___राजन् ! यदि आपका पुत्र ही चोरी करता है तो चोरी करनेसे दूसरोंको कैसे रोका जा सकता है ? राजकुमारका चोरी करना उसी प्रकार है जैसा वाद्वारा खेतका खाना । कोतवालकी बात सुन इधर महाराजने तो इमसानभूमिकी ओर गमन किया और उधर कुमार वारिषेणके व्रतके प्रभावसे हार फूलकी माला बन गया । ज्योंही महाराजने यह दैवी अतिशय सुना तो वे कोतवालकी निंदा करने लगे और कुमारके पास क्षमा कराना चाहा । विद्युत चोर भी यह सब दृश्य देख रहा था उससे ये बातें न देखी गई । वह शीघ्रही महाराजके सम्मुख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402