Book Title: Shrenik Charitra Bhasha
Author(s): Gajadhar Nyayashastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 371
________________ ( ३५० ) पाणिपात्रोंमें भोजन करना पड़ता है। जो भांति २ के पके अन्न और खीर आदि पदार्थों का भोजन करते थे उन्हें अब पारणा में तेलयुक्त कोदों कंगु आदि पदार्थ खाने पड़ते हैं । जो हाथी घोड़े आदि सवारियोंपर सवार हो जहांतहां घूमते थे बेही अब कंटकाकीर्ण जमीनपर चलते हैं । जो सात२ ड्योढ़ीयुक्त मणिजड़ित महलोंमें सोते थे वेही अब अनेक सर्पोंसे व्याप्त पहाड़ों की गुफा में सोते हैं । राज्यावस्था में जिनकी प्रशंसा पराक्रमी और महामानी बड़े २ राजा करते थे उनकी प्रशंसा अब चारित्रसे पवित्र निरभिमानी बड़े २ मुनिराज करते हैं । राज्य अवस्था में जो रतिजन्य सुखका आस्वादन करते थे वेही अब विषयातीत नित्य ध्यानजन्य सुखका आस्वादन करते हैं। जो राजमंदिरमें कामिनियोंके मुखसे उत्तमोत्तम गायन सुनते थे उन्हें अब श्मसानभूमिमें मृग और शृगालोंके भयंकर शब्द सुनने पड़ते हैं । राजघर में जो पुत्रनातियों के साथ खेल खेलते थे अब वे निर्भय किंतु विश्वस्त मृगों के साथ खेल खेलते रहते हैं । इसप्रकार चिरकालतक घोरतप तपकर परीषह जीतकर और घातिया कर्मों का विध्वंसकर शुक्लध्यानके प्रभावसे मुनिवर अभयकुमारने केवलज्ञान प्राप्त कर लिया एवं केवलज्ञानकी कृपासे संसार के समस्त पदार्थ जानकर भूमंडलपर बहुतकालतक विहार कर अचित्य अव्याबाध मोक्षसुख पाया । इनसे अन्य और जितने योगी थे वे भी अपने २ कर्मविपाक के अनुसार स्वर्ग आदि उत्तमोत्तम गतियों में गये । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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