Book Title: Shrenik Charitra Bhasha
Author(s): Gajadhar Nyayashastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 369
________________ ( ३४८) आपने जो यह कहा कि तप चौथेपनमें धारण करना चाहिये सौ चौथेपनमें शरीर तपके योग्य रहता ही कहां है ? उस समय तो शरीर मंद पड़ जाता है । इंद्रियां भी शिथिल पड़ जाती हैं। इसलिये स्वस्थ अवस्थामें ही तप महापुरुषोंद्वारा योग्य माना गया है । महनीयपिता ! रूप लावण्य आदि क्षणिक हैं निस्सार हैं। गृहादिकमें संलम जो बुद्धि है सो मिथ्याबुद्धि है और असार है। कृपानाथ ! यह राज्य भी विनाशीक है मैं कदापि इस राज्यको स्वीकार न करूंगा किंतु समस्तपापोंसे रहित मैं निश्चल तप धारण करूंगा। मैंने अनेकवार इस राज्यका भोग | किया है। मेरे सामने यह राज्य अपूर्व नहिं हो सकता । अक्षयसुख मोक्षसुख ही मेरे लिये अपूर्व है । पूज्यवर ! मैंने आपकी आज्ञाका भी अच्छी तरह पालन किया है । अब मैं भविष्यत् कालमें आपकी आज्ञा पालन न कर सकूँगा इसलिये आप कृपाकर मुझै तपके लिये आज्ञा प्रदान करें। पुत्रको तपके लिये उद्यमी देख महाराज श्रेणिकके मुखसे अविरल अश्रुधारा | वहने लगी । तथापि अभयकुमार उन्हें अच्छीतरह समझाकर अपनी माताको भी संबोध कर और अतिशय मनोहरांगी अपनी प्रिय स्त्रियोंको भी समझा कर शीघ्रही घरसे निकले और राजा आदिके रोकेजानेपर गजकुमार आदिके साथ हाथी पर सवार हो विपुलाचलकी ओर चलदिये। उस समय विपुलाचलपर महावीर भगवानका समवसरण बिराजमान था इसलिये ज्योंही अभयकुमार विपुलाचलके पास Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402