Book Title: Shrenik Charitra Bhasha
Author(s): Gajadhar Nyayashastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 393
________________ ( ३७२ ) दूसरी कुमारी बोली- माता ! वळी बेश्यायते सदा १ धरायां संगतं नभः । इन दो समस्याओं की पूर्ति जल्द करो । मावाने जवाब दिया - ॥१॥ ॥२॥ १ स्वपुष्पं दर्शयत्येव कुलीना सुपयोधरा । मधुपैश्धुंव्यमानाच वली वेश्यायते सदा पानीये वालिशैर्नूनं घरास्थे प्रतिविम्बितं । दृश्यते च शुभाकारं धरायां संगतं नभः दूरस्थै दूरतो नूनं नरै विज्ञान पारगैः । इष्यते च शुभाकारं धरायां संगतं नभः कोई कुमारी मातासे यह कहैगी, शुभलक्षाणोंकी आकरमृगनयनी । प्रियवादिनि । नियमसे आपके गर्भमें किसी पुण्यवान अवतार लिया है। माता यह झूठ न समझो क्योंकि जो मनुष्य पक्षपाती और पूज्योंका वंचन करते हैं संसारमें वे ॥३॥ 1 १ लता वेश्याके समान आचरण करती है क्योंकि वेश्या जैसी स्वपुष्पं दर्शयति । रजोधर्मयुक्त होती है लता भी पुष्प ( फूल ) युक्त होती है । वेश्या जैसी कुलीना नीच पुरुषोंमें लीन रहती है लता भी कुलीना पृथ्वीमें लीन है । वेश्या जैसी सुपयोधरा उत्तम स्तनयुक्त होती है लता भी उत्तम दुधयुक्त है । वेश्या जैसी मधुपैश्रुंव्यमाना मद्यपजनसे चुंव्यमान होती है लता भी भोरोंसे चुंव्यमान है ॥२॥ मूर्ख लोग भूमिस्थ पानीमें स्पष्टतया आकाशको देखते हैं इसलिये आकाश भूमिपर कहा जाता है || ३ || विज्ञानके वेत्ता पुरुष दूरसे आकाशको पृथ्वीपर रक्खा हुआ समजते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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