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किस
मीतरी
नरमेष
अश्वमेघ
सूधर्म
शास्त्ररुपी
आश्रर्य
दूर्म
आपके
सौ
मुखसे
रुखी
दिखा
पिताकी
रानीको
वह इसप्रकार
भयभित
विपास शुभलक्षाणों की
नीचिकी
( ३ )
पाठक सुधारलेवे।
किसी
भीतरी
नरमेध
अश्वमेघ
सुधर्म
शास्त्ररूपी
आश्चर्य
दुष्कर्म
आपका
सो
नेत्रों से
रूखी
दीखा
पिताको
चलना रानीको
इसप्रकार
भयभीत
विपाश शुभलक्षणों की नीतिश्री
३३४ १६
३३५
५
३३६ २
३३६ ३
३३७
३४० ८
३४०
३४१
३४३
३४८
३४८
३५२
३५२
३५६
३१८
१५
५
१३
२
१५
२१
<
१३
१३
३५८
३५९ ७
३७० १७
३७२
१०
३७६
२५७ से २७२ तक की पृष्ठसंख्या छपने में गलती हुई है सोभी
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