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करेंगे। राजा लोगों को नीत्तिकी शिक्षा देंगे, व्यापारका ढंग सिखलांयगे और भोजनादि सामिग्रीकी शिक्षा प्रदान करेंगे । इस रीति से भगवान पद्मनाभ कुछ दिन राज्य करेंगे पश्चात् कुछ निमित्त पाकर शीघ्रही भवभोगों से विरक्त हो जायगे और सद्धर्मकी ओर अपना ध्यान खीचेंगे। भगवानको भवभोगों से विरक्त जान शीघ्रही लोकांतिक देव आंयगे और महाराजकी वार२ स्तुति कर उन्हें नालिकी बिठा वन ले जायगे । भगवान तप धारण कर और तपके प्रभावसे मन:पर्ययज्ञान प्राप्त करेंगे और पीछे केवलज्ञान प्राप्त करेंगे । भगवानको केवलज्ञानी जान देवगण आयगे और समवसरणकी रचना करेंगे। भगवान समवसरण में सिंहासन पर विराजमान हो भव्यजीवोंको घर्मोपदेश देंगे। जहांतहां विहार भी करेंगे और अपने उपदेश रुपी अमृत से भव्यजीवोंके मन संतुष्ट कर समस्त कर्मों का नाश निर्वाणस्थान चलेजांयगेजिस समय भगवान मोक्ष चले जांयगे उससमय देव उनका निर्वाणकल्याण मनांयगे तथा सानंद अपनी देवांगनाओंके साथ स्वर्ग चले जायगे और वहां आनंदसे रहेंगे । इसप्रकार भगवान पद्मनाभ के पूर्वभव के जीव महाराज श्रेणिकके चरित्र में भविष्यत काल में होनेवाले भगवान पद्मनाभके पंच कल्याण वर्णन करनेवाला पंद्रहवां सर्ग समाप्त हुआ ।
॥ समाप्तोऽयं ग्रंथ ॥
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