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( ३७४ ) भगवानको हाथमें लेकर इंद्रके हाथमें देगी। भगवानको देख इंद्र अति प्रसन्न होगा और शीघ्रही हाथीपर विराजमान करेगा । उस समय ईशान इंद्र भगवानपर छत्र लगायगा ।
सनत्कुमार और भाहेंद्र दोनों इंद्र चमर ढोरेंगे एवं सबके सब | मिलकर आकाश मार्गसे मेरुपर्वतकी ओर उसी क्षण चलदेंगे । मेरुपर्वतपर पहुंच इंद्र भगवानको पांडुकशिलापर बिठायगा । उस समय देवगण एक हजार आठ कलशोंसे भगवानका अभिषेक करेंगे । इंद्र उसी समय भगवानका नाम पद्मनाभ रक्खेगा । अनेक प्रकार भगवानकी स्तुति करेगा । और उस समय भगवानका रूप देख तृप्त न होता हुआ सहस्राक्ष होगा । बालक भगवानको इंद्राणी अपनी गोदमें लेगी और अनेक भूषणोंसे भूषित करेगी। भूषणभूषित भगवान उस समय सूर्यके समान जान पड़ेंगे और दुंदुभि आनक शंख काहलोंके शब्दोंके साथ नृत्य करते हुए, तालके शब्दोंसे समस्त दिशा पूरण करते हुए, लयपूर्वक रागसहित सरस गान करते हुऐ, और जयर शब्द करते हुए समस्त देव मेरुपर्वतपर भगवानके जन्मकालका उत्सव मनायगे । पश्चात् अनेक देवोंसे सेवित इंद्र भगवानको गोदमें लेकर हाथी पर विराजमान करैगा । अनेक शालि धान्य युक्त, बड़ी२ गलियोंसे व्याप्त ध्वजायुक्त, अनेक | मकानोंसे शोभित अयोध्यापुरीमें भायगा। बड़े २ |
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