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( ३४९) पहुचें उन्होंने राजचिन्ह छोड़ दिये गजसे उतर शीघ्रही समवसरणमें प्रवेश किया। समवसरणमें विराजमान महावीरभगवानको देख तीन प्रदक्षिणां दी पूजन नमस्कार और स्तुति की। गौतम गणधरको भी प्रणाम किया और दीक्षार्थ प्रार्थना की। वस्त्रभूषण आदिका त्यागकर बहुतसे कुटुबियों के साथ शीग्रही परम तप धारण किया । तेरह प्रकारका चारित्र पालने लगे एवं ध्यानकतान मुक्तिके अभिलाषी वे परमपदकी आराधना करने लगे । जो अभयकुमार आदि महापुरुष अनेक कोमल २ वस्त्रों से शोभित हंसोंके समान स्वच्छ रुईसे बने मनोहर पलिंगोंपर सोते थे वहीं अब ककरीली जमीनपर सोने लगे । जो शीतकालमें मनोहर २ महलोंमें कामविह्वला रमणियों के साथ सानंद शयन करनेवाले थे वे चौतर्फा अतिशय शीतल पवनसे व्याप्त नदीके तीरोंपर सोते हैं । ग्रीष्मकालमें जो शरीरपर हरिचंदनका लेप करा फुवारासहित महलोंके रहनेवाले थे वही अब अतिशय तीक्ष्ण सूर्यके आतापको झेलते हुऐ पर्वतोंकी शिखरोंपर निवास करते हैं । जो उत्तमपुरुष वर्षाकालमें, जहां किसी प्रकारके जलका संचार नहि ऐसे उत्तमोत्तम घरोंमें रहते थे उन्हें अब जलसे व्याप्त वृक्षों के नीचे रहना पड़ता है। पतले किंतु उत्तम चीनी वस्त्रोंसे सदा जिनके शरीर ढके रहते वेही अब चोहटोमें वस्त्ररहित हो सानंद रहते हैं । जो चित्रविचित्र रत्नोंसे जडित सुवर्णपात्रों में भोजन करते थे उन्हें अब सछिद्र
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