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(३४७) पुत्रके ऐसे वचन सुन राजा श्रेणिकने अपने कान बंद कर लिये । उनके चित्तपर भारी आघात पहुंचा मूर्छित हो वे शीघ्रही जमीन पर गिरगये और उनकी चेतना थोड़ी देरके लिये एक ओर किनारा कर गई । महाराज श्रेणिककी ऐसी विचेष्टा देख उन्हें शीघ्र सचेतन किया गया। जब वे बिलकुल होशमें आ गये तो कहने लगे
प्रिय पुत्र ! तूने यह क्या कहा ! तेरा यह कथन मुझै अनेक भय प्रदान करनेवाला है । तेरे विना नियमसे यह समस्त राज्य शून्य हो जायगा । मैं राज्य करूं और तू तप करै यह सर्वथा अयोग्य है। जिनभगवानके समीप जाकर तुझै चौथेपनमें तप धारण करना चाहिये इस समय तेरी उम्र निहायत छोटी है । कहां तो तेरा रूप ! कहां तेरा सौभाग्य ! राज्ययोग्य तेरी क्रीड़ा कहां? कहां तेरा लावण्य तथा कहां तेरी युक्तियुक्त वाणी और कोमल देह ! तेरी बुद्धि इस समय असाधारण है। बलवानपना वीरता वीर मान्यता जैसी तुझमें है वैसी किसीमें नहिं । प्रिय पुत्र ! अनेक राजा और सामंतोंसे सेवनीय पुण्यवानों द्वारा प्राप्त करने योग्य यह राज्यभार तुम ग्रहण करो और तपका हठ छोड़ो। पिताके ऐसे मोह परिपूर्ण वचन सुन अभयकुमारने कहा____ पूज्य पिता ! संसारमें जितनेभर उत्तमोत्तम सुख मिलते | हैं वे तपकी कृपासे मिलते हैं ऐसा बड़ेर पुरुषोंका कथन है।
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