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___ ( ३४५ ) चौदहवां सर्ग।
कदाचित् महाराज सानंद सभामें विराजमान थे । समस्त | भयोंसे रहित संसारकी वास्तविक स्थिति जाननेवाले कुमार अभय सभामें आये । उन्होंने भक्तिपूर्वक महाराजको नमस्कार किया
और सर्वज्ञभाषित अनेक भेदप्रभेदयुक्त वह समस्त सभ्योंके सामने वास्तविक तत्त्वोंका उपदेश करने लगा। तत्त्वोंका व्याख्यान करते २ जब सब लोगों को दृष्टि तत्त्वोंकी ओर झुक गई है तो वह अवसर पाकर अपनी पूर्व भवाबलीके स्मरणसे चित्तमें अतिशय खिन्न हो अपने पितासे कहने लगा
पूज्यपिता ! इस संसारसे अनेक पुरुष चले गये । युगकी आदिमें ऋषभ आदि तीर्थकर भरत आदि चक्रवर्ती भी इंच करगये । कृपानाथ ! यह संसार एक प्रकारका विशाल समुद्र है क्योंकि समुद्र में जैसी मछलियां रहती हैं संसाररुपी समुद्रमें भी जन्मरुपी मछलियां हैं । समुद्रमें जैसे भमर पड़ते हैं संसाररुपी समुद्रमें भी दुःखरुपी भमर हैं। समुद्रमें जैसी कल्लोलें होती हैं । संसारसमुद्रमें भी जरारुपी तीव्र कल्लोले मोजूद हैं। समुद्रमें जिस प्रकार कीचड़ होती है संसाररुपी समुद्रमें मी पापरुपी कीचड़ है । जैसा समुद्र तटोंसे भयंकर होता है उसी प्रकार संसाररुपी समुद्र भी मृत्युरुपी तटसे भयंकर है। समुद्रमें जैसा बड़वानल होता है संसारसमुद्रमें भी चतुतिरुप वड़वानल है।
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