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ऐसा करेगा तो जैनधर्मकी प्रभावनाका नाश हो जायगा । इसलिये तेरा यह कर्तव्य सर्वथा अनुचित है। यदि तू नहिं मानता तो तुझे नियमसे इस दुष्कर्मका फल भोगना पड़ेगा । मुने ! जो तुमने मुझसे दुष्टवचन कहे हैं उनसे तुम कदापि मुनि नहि हो सकते इसलिये तुम शीघ्रही दुष्कर्मका त्याग करो जिससे तुम्हें मुक्ति मिले । अभी तुम मेरे साथ चलो । मैं तुम्हारी सब आशा पूरी करूंगा । और यदि तुम मेरे साथ न चलोगे तो तुम्हें गधेपर चढ़ाकर तुम्हारा हाल बेहाल करूंगा । इसप्रकार साम्य आदि वचनों से मूनिको समाश्वासन दे राजा श्रेणिक उन दोनों को घर ले आये और अपने मंदिरमें लाकर ठहराया । जिस समय मंत्रियोंने राजा श्रेणिकको चारित्रभ्रष्ट मुनि और आर्यिकाके साथ देखा तो वे कहने लगे
राजन् ! आप क्षायिक सम्यग्दृष्टि हैं आपके संग चारित्रभ्रष्ट इस मुनि आर्यिका युगल के साथ कदापि योग्य नहिं हो सकता । आपको इनका संबंध शीघ्र ही छोड़ देना योग्य है । चारित्रभ्रष्ट मुनि आर्यिका के नमस्कार करनेसे आपके दर्शन में अतिचार आता है | मंत्रियोंके ऐसे वचन सुन महाराज श्रेणि1 कने जवाब दिया
वेषधारी इस मुनिको मैंने वास्तविक मुनि जान नमस्कार किया है इससे मेरे दर्शनमें कदापि अतिचार नहिं आ सकता किंतु चारित्र में अतिचार आता है सो चारित्र मेरे नहिं है इस
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