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(३४१) किसी तालावसे निकाल अपने कमंडलूमें रखता हुआ उस गर्भवती आर्यिकाके साथ रहने लगा। महाराज श्रेणिक वहां आये । उन्हें देख जल्दी घोड़ेसे उतर और भक्तिपूर्वक उन्हें नमस्कारभी कर कहने लगे
समस्त मनुष्योंका हास्यास्पद यह दृष्कर्म आप क्या कर रहे हैं ? इस वेषमें यह दुष्कर्म आपको सर्वथा वर्जनीय है। श्रेणिकके ऐसे वचन सुन मायावी उस देवने जवाब दिया
राजन् ! गर्भवती इस आर्यिकाको मछलीके मांस खानेकी अभिलाषा हुई है इसलिये इसीके लिये मैं मछलियां पकड़ रहा है। इस कर्मसे मुझै, कोई दोष नहिं लग सकता । देवकी यह बात सुन श्रेणिकने कहा___मुनिवेष धारणकर यह कर्म आपके लिये सर्वथा अयोग्य है । इसमें मुनिलिंगकी बड़ी भारी निंदा है। आपको चाहिये कि इस कामको आप सर्वथा छोड़दें । देवने कहा
राजन् । तुम्हीं कहो इस समय हमैं क्या करना चाहिये ! मेरा अनायासही इस निर्जन वनमें इस आर्यिकाके साथ संबंध हो गया इसलिये इसे गर्भोत्पत्ति और मांसाभिलाषा हो गई । मैं इसे अब चाहता हूं इसलिये मेरा कर्तव्य है मैं इसकी इच्छायें पूरण करुं । छली मुनिकी यह बात सुन राजाने कहा
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