Book Title: Shrenik Charitra Bhasha
Author(s): Gajadhar Nyayashastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 360
________________ ( ३३९) रत्नजड़ित मुकुट झिलमिलाने लगा । चारों ओर दिशा सुगंधिसे व्याप्त हो गई । निर्मल ऋद्धियोंकी प्राप्ति हो गई। शरीर दिव्यवस्त्र और आभूषणों शोभित हो गया । तथा नेत्र विशाल और निर्निमेष हो गये । जिस समय देवने अपनी ऐसी सुंदर दशा देखी तो वह विचारने लगा मैं कोंन हूं ? यहां कहांसे आया हूं! मेरा क्या स्थान और क्या गति है ? मनोहर शब्द करनेवालीं ये देवांगना क्यों इस प्रकार मुझे चाहती हुई नृत्यकर रही हैं ! इस प्रकार विचार करते २ अपने अवधिज्ञानबलसे शीघ्रही उसने 'मैं व्रतोंकी कपासे हाथीकी योनिसे यहां आया हूं' इत्यादि वृत्तांत जान लिया। तथा वृत्तांत जानकर और अपनेको स्वर्गस्थ देव समझकर जिनेंद्र आदिको पूजते हुवे उसने धर्ममें मति की। दिव्यांगनाओंके साथ वह आनंद सुख भोगने लगा, नंदीश्वर पर्वतपर जिनमंदिरोंको पूजने लगा । इस रीतिसे वचनागोचर स्वर्ग भोगकर और वहांसे च्युत होकर अब तू रानी चेलनाके गर्भमें आकर उप्तन्न हुआ है। इस प्रकार गौतम गणधरद्वारा अभयकुमार दंतिकुमारका पूर्वभववृत्तांत सुन श्रेणिक आदि प्रधान २ पुरुषोंको अतिशय मानंद हुआ। सवोंने शीघ्रही मुनिनाथको नमस्कार किया। दृढसम्यक्त्वकथासे पूर्ण जिनशासनको स्मरण करते हुवे भगवानके गुणों में दत्तचित्त वे सब प्रीतिपूर्वक नगरमें आगये । और बड़े २ महाराजोंको वशमें कर महाराज श्रोणिकने महामंडलेश्वरपद प्राप्त कर लिया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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