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wwwwwwwwwwwwwwww अंतमें मरकर अब तू अभयकुमार नामका धारी राजा श्रेणिकका पुत्र उत्पन्न हुआ और अब जैनशास्त्रानुसार तप कर तू नियमसे सिद्धपदको प्राप्त होगा । इस प्रकार जब गौतम गणधर अभयकुमारके पूर्वभवका वृत्तांत कह चुके तो दंतिकुमारने भी विन. यसे कहा--
प्रभो ! मैं पूर्वभवमें कोन था ? कैसा था ? कृपाकर कहैं। दतिकुमारके ऐसे वचन सुन गौतम भगवानने कहा
यदि तुम्हें अपने पूर्वभवके सुननेकी इच्छा है तो मैं कहता हूं तुम ध्यानपूर्वक सुनो-इसी पृथ्वीतलमें एक अनेक प्रकारके वृक्षोंसे मंडित भयंकर दारुण नामका वन है । किसी समय उस वनमें अतिशय ध्यानी सूधर्म नामका योगी तप करता था। और अतिशय निर्मल अपने शुद्धात्मामें लीन था । उस वनका रखवारा दारुणमिल नामका देव था। कार्यवश मुनिराजको विना देखेही उसने वनमें अग्नि लगादी । कल्पांतकालके समान अमिकी ज्वाला धधकने लगी। अमिज्वालासे मुनिराजका शरीर भस्म होने लगा। उनके प्राणपखेरु उडभगे और मरकर मुनिराज अच्युत स्वर्गमें जाकर देव हो गये ।
जब वनरक्षक देवने मुनिराजका अस्थिपंजर देखा तो उसै परम दुःख हुआ। अपनी वार २ निंदा करता वह इस प्रकार विचारने लगा कि हाय ! ! ! चारित्रसे पवित्र तपसे शोभित विनाकारण मैंने मुनिराज के शरीरको जला दिया। हाय !
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