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mmmmmmmmmmmm मुझसे अधिक संसारमें पापी कोई न होगा तथा इस प्रकार विचार करते उसकी आयु समाप्त हो गई और वह मरकर उसी जगह शुभ, विशाल शरीरका धारक उन्नतदंतोंसे शोभित एवं अंजनपर्वतके समान ऊंचा हाथी हो गया।
कदाचित् अष्टान्हिका पर्वमें अच्युत स्वर्गका निवासी वह मुनिका जीव देव नंदीश्वर पर्वतकी वंदनार्थ निकला और उसी वनमें उसै वह हाथी दखिपड़ा । अपने अवधिज्ञानबलसे देवने अपनी पूर्व मुनिमुद्रा जानली और पुष्करविमानसे उतर कर उस वनमें उसी प्रकार ध्यानमें लीन होगया। हाथीने जब उसै देखा तो उसै शीग्रही जातिस्मरण हो गया । जातिस्मरण होते ही उसकी आखोंसे अश्रुपात होने लगा। अपने पूर्वभवकी वारवार निंदा करते हुवे शीघ्रही उस देवको नमस्कार किया। देवके उपदेशसे हाथीने सम्यग्दर्शनके साथ शीघ्रही श्रावकव्रत धारण किये । देव वहांसे चला गया हाथी भी प्रासुकजल और पक फलाहारसे श्रावकव्रत पालन करने लगा। अपने आयुके अंतमें सन्यास धारणकर हाथीने समाधिपूर्वक अपना चोला छोड़ा । और अनेक देवोंसे सेवित सहस्रार स्वर्गमें जाकर देव हो गया । जैसे क्षणभरमें आकाशमें मेघसमूह प्रकट हो जाता है उसी प्रकार उत्पादशिलापर उप्तन्न होतेही अंतर्मुहूर्तमें उसे पूर्ण शरीरकी प्राप्ति हो गई उसके कानोंमें कुंडल और केयूर झलकने लगे । वक्षस्थलमें मनोहर विशाल हार और शिरपर मनोहर
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