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( ३४४ ) | लिये इनको नमस्कार करनेपर भी कोई दोष नहिं । महाराज श्रेणिकका ऐसा पांडित्प देख और इंद्रद्वारा की हुई प्रशंसाको वास्तविक प्रशंसा जान वे दोनों देव अति आनंदित हुए । अपना रूप बदल उन्होंने शीघ्रही आनंदपूर्वक रानी चेलना और महाराज श्रेणिकके चरणोंको नमस्कार किया। सुवर्ण सिंहासनपर बैठाकर दोनों देवोंने भक्तिपूर्वक गंगा सीता आदि नदियों के निर्मल जलसे राजा रानीको स्नान कराया वस्त्र भूषण फूलोंसे प्रशंसापूर्वक उनकी पूजा की। अनेक अन्यान्य गुण और सम्यग्दर्शनसे शोभित उन दोनों दंपतीको नमस्कार कर आकाशमें पुष्पवर्षा के साथ वाद्यनादोंको . कर अतिशय हर्षित और राजा रानीके गुणोंमें दत्तचित्त वे दोनों देव कीर्तिभाजन बने । सो ठीक ही है सम्यग्दर्शनकी कृपासे सम्यग्दृष्टियोंकी बड़े२ देव परमसंतोष देनेवाली पूजन करते हैं और संसारमें सम्यग्दर्श नकी कृपासे इन्द्रोंद्वारा प्रशंसा भी मिलती है।
इस प्रकार पद्मनाभ तीर्थकरके पूर्वभवके जीव महाराज श्रेणिकके चरित्रमें देवद्वारा
अतिशयप्राप्तिवर्णन करनेवाला तेरहवां सर्ग
समाप्त हुवा।
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