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महान ऋद्धिकाधारक अनेक देवोंसे पूजित देव हो गया । स्वर्गके अनेक सुख भोग भविष्यत कालमें चेलनाका जीव नियमसे मोक्ष जायगा | रानी चेलनाके सिवाय और जितनी रानियां थी वे भी तपकर और प्राणोंका परित्याग कर यथायोग्य स्थान गई ! इस प्रकार चेलना आदि रानियां समस्त पापका नाश कर और पुंवेद पाकर स्वर्ग गई । और वहां देव हो अनेक मनोहर देवांगनाओंके साथ क्रीड़ाकर भोगभोगने लगीं । महाराज श्रेणिक भी सप्तम नरककी प्रबल आयुका नाशकर रत्नप्रभानामक प्रथम नरकमें गये । तथा वहां पापफलका विचार करते हुए और अपनी निंदा करते हुए रहने लगे । अब वे चौरासी हजार वर्ष नरकदुःख भोगकर और वहांकी आयुको छेदकर भविष्यतकालमें तीर्थंकर होगे और कर्म नाश सिद्धपद प्राप्त करेंगें ।
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इस प्रकार तीर्थंकर पद्मनाभके पूर्वभवके जीव महाराज श्रेणिक के चरित्रमें श्रेणिक चेलना आदिकी गति वर्णन करनेवाला चौदहवां सर्ग समाप्त हुआ ।
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